हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

शनिवार, 21 अगस्त 2010

अरे हम बंदी किसके थे जो हमें कोई आजाद करेगा हमने तो उन्हें केवल व्यापर के लिए चंद समय और जगह दी थी.. Ankur Mishra "YUGAL"

आखिर आ ही गया हमारी स्वतंत्रता का ६४वा वर्ष !




चलिए हम जरा विचार करते है की हमने , हमारे भारत के लिए इन ६४ वर्षों में कितने महान कार्य और कितने सराहनीय कार्य किये है, जिनसे हमारा और हमारे मुल्क का विकाश हुआ है!



जी हा हम कह रहे है अब ६४ वर्ष जो अब बीत चुके है जो बहुत ज्यादा होते है, आजकल तो एक मनुष्य की उम्र भी नहीं होती इतनी ....



फिर भी हम उनसे पीछे क्यों है, क्या हमारे पास संसाधनों की कमी है ,क्या हमारे पास तकनीक की कमी है ,क्या हमारे पास दिमाग की कमी है ,क्या हमारे पास शक्ति की कमी है???नहीं हम किसी में भी काम नहीं है !हम एक अरब से ऊपर है जो महान शक्ति का प्रतीक है ,विश्व के सर्वोच्च कोटि के डॉक्टर ,इन्जीनिअर,प्रयोग्शाश्त्री यही से होते है जो महान दिमाग के उत्पत्ति के सूचक है ,विश्व के महान तकनिकी संस्थानों के नायक भारतीय है जो महान तकनीक का सूचक है जब हमारे पास इतना सब है तो हम उनसे पीछे क्यों है !



और छोडिये आज जिस कम्पूटर पर सारा विश्व चलता है उस कम्पूटर को चलने वाला"शून्य" हमारी ही देन है,इस विश्व को पढना -लिखना किसने सिखाया है -हमने ,तभी तो हम एक समय पर विश्व गुरु थे और आज नहीं है इसका कारण क्या है !!!!!!!



क्या आपको नहीं लगता की केवल हमारे विचारो के कारण ही हम विश्व से पीछे है एक समय पर हम विश्व गुरु थे और आज हम सैकड़ो में भी नहीं आते !



एक समय पर हमारे पास वो अस्त्र - शश्त्र थे की हम पूरी दुनिया को हिला सकते थे और आप अपनों से ही हिल रहे है ! इस दुनिया को हमने ही उस श्रृंखला में लाके खड़ा किया है की वो अपने अधिकारों को ले सके हाँ ये सत्य है की उसने हमें छल से घायल कर दिया था पर यह तो सोचनीय है की ६४ वर्ष में तो अच्छा से अच्छा घाव सही हो जाता है फिर हम तो केवल चोटिल थे अरे आप और छोड़िये अपने पडोसी "जापान" को देखिये वो तो मृत्यु के दरवाजे से निकला था पर आज पूर्ण रूपेण विकसित है हाँ वहा के लोगो में अभी तक घाव है पर उन्होंने अपने देश के घाव को सही कर दिया !



अरे हम उसी को आदर्श बना कर चल सकते है आखिर हमारा अच्चा दोस्त है वो! वहां भ्रष्टाचार नहीं होता ,वहा के नेता अपने देश का धन दुसरे देशो में जमा नहीं करते ,वहां के नागरिक दुसरे को पतन पर नहीं बल्कि खुद को उन्नति के मार्ग ले जाने का प्रयास करते है ,वहा वर्ष में हजारो चुनाव नहीं होते,अरे वहा हर उस मार्ग को चुनते है जिससे आज के आवश्यक तथ्य "समय और धन" की बचत हो सके और उसका उपयोग अन्य किसी कार्य में कर सके !आखिर ये संभव कैसे है --- केवल और केवल उनके विचारो के कारण उनके विचार उनके देश के साथ है वो देश को सोचकर कोई कदम उठाते है !क्या वो कुछ अलग करते है ,क्या वो खाना नहीं खाते ,क्या वो सोते नहीं है ,क्या वो लड़ते नहीं है ??????



जी नहीं ये सब उनके यहाँ भी होता है अरे ये तो दैनिक जीवन के क्रिया कलाप है सब कोई करता है !!!!!!!! हाँ पर ये तथ्य है की वो केवल इन्ही कारणों से सबसे आगे है क्योकि वो सभी कार्य एक अलग तरीके से करते है ;उनका कार्य को करने का हर तरीका अलग होता है !अद्वितीय होता है!!!!!!!!!!



जी हा ये सब हम भी कर सकते है और सारे तरीके हमारे पास भी है क्योकि हमारे पूर्वजो से ही इन्होने लिए है.....लेकिन आज समस्या यही है की अह हम खुद को भूल चुके है और इसी का परिणाम हमारा देश और हम भुगत रहे है ,और हमी कहते है हम आजाद नहीं है """अरे हम बंदी किसके थे जो हमें कोई आजाद करेगा हमने तो उन्हें केवल व्यापर के लिए चंद समय और जगह दी थी पर ये "सत्य" है की हमारे विचारो को कुलीन इसी समय ने किया है !!!!!! हाँ यदि हमने अभी से ही अपने विचारो पर विचार करना सुरु कर दिया तो विश्व की कोई ताकत हमसे आँगे नहीं हो सकती....

शमशान-----{कविता}----- वंदना गुप्ता

दुनिया के कोलाहल से दूर
चारों तरफ़ फैली है शांति ही शांति
वीरान होकर भी आबाद है जो
अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो
नीरसता ही नीरसता है उस ओर
फिर भी मिलता है सुकून उस ओर
ले चल ऐ खुदा मुझे वहां
दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ