हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

तुम याद आई हो----------[के एस एस कन्हैया ]


जब भी निदाघ में उठी है हवा, तुम याद आई हो
श्वास में जब भरी कोई सुगंधि, तुम याद आई हो


यूँ तो मंदिरों मंदिरों न कभी घूमा किया अभागा
जब भी ये सर कहीं झुका, तुम याद आई हो


फूल दैवी उपवनों के भू पर खिले हैं घर-घर में
जब भी दिखा निश्छल कोई शिशु, तुम याद आई हो


संगीत-सी ललित कविता-सी कोमल अयि कामिनी
किसी लय पर जो थिरकी हवा, तुम याद आई हो


जो तुम वियुक्त तो हर धड़कन लिथड़ी रक्ताक्त अश्रु में
कभी औचक जो मुस्कराया, तुम याद आई हो


जलती आग सी सीने में, है धुआँ-धुआँ साँसों का राज
जब फैली कहीं भी उजास, तुम याद आई हो


मरुस्थली सा जीवन, वसंत मात्र स्वप्न है सुजीत का
जब भी कूकी कोई कोकिला, तुम याद आई हो

**********