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सोमवार, 18 मई 2009

महादेवी वर्मा की जन्मस्थली बेचने का प्रयास

कहते हैं कि साहित्य समाज को रास्ता दिखाता है। जिस समाज का साहित्य और संस्कृति नहीं होता, वह मृतप्राय है। यही कारण है कि विभिन्न साहित्यकारों से जुड़ी चीजों को धरोहर रूप में सुरक्षित रखा जाता है, ताकि आगामी पीढ़ियां जान सकें कि अमुक साहित्यकार ने किन परिस्थितियों और वातावरण के मध्य सृजन कार्य किया। यह एक तरह से साहित्यकारों के प्रति समाज की श्रद्धांजलि भी है। ऐसे में किसी प्रसिद्ध साहित्यकार की जन्म स्थली को बेचे जाने का प्रयास किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। वो भी तब जब वह साहित्यकार स्वयं महादेवी वर्मा हों। साहित्य ही नहीं साहित्य से परे भी महादेवी वर्मा के अपने प्रशंसक हैं। ऐसे में यह जानकर बड़ा दुःख होता है कि महीयसी महादेवी वर्मा ने जिस मकान में जन्म लिया, उसे बेचने का प्रयास किया जा रहा है। यह मकान है उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जनपद स्थित मोहल्ला गणेश प्रसाद में। इस आवास के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है। यही वह स्थान बताया जाता है जहां फाल्गुनी पूर्णिमा को इस महान कवियित्री ने जन्म लिया था। वस्तुतः यह मकान महादेवी वर्मा के मामा का था। महादेवी वर्मा के बचपन में ही यहां से जाने के बाद यह मकान दूर के रिश्तेदारों के कब्जे में आ गया। फिलहाल यह मकान इस समय कानपुर निवासी कश्मीर देवी के कब्जे में है। कश्मीर देवी अब इस मकान को बेचना चाहती हैं, पर उस क्षेत्र के निवासी महादेवी वर्मा से जुड़े इस मकान पर उनका स्मारक या हिन्दी साहित्य की समृद्ध लाइब्रेरी देखना चाहते हैं। उनकी यह इच्छा अनुचित भी नहीं कही जा सकती। पिछले दिनों जब एक दलाल ने किसी ग्राहक को मकान बेचने के लिए खोलकर दिखाया तो क्षेत्रवासी उत्तेजित हो गये और उस घर के मुख्य द्वार पर ताला डालकर प्रशासन से वहां हस्तक्षेप करने और महादेवी जी का स्मारक बनाने की मांग की है। फिलहाल मामला भावनाओं से जुड़ा हुआ है और तमाम साहित्यिक-सामाजिक संस्थायें एवं साहित्यिक विभूतियाँ इस मामले में सक्रिय हो चुकी हैं। देखने की बात यह है कि महादेवी वर्मा जी की यह जन्मस्थली अपनी पहचान को स्थापित कर किसी इतिहास का कालखण्ड बन पायेगी अथवा वक्त के साथ धूल-धूसरित हो जायेगी।

कृष्ण कुमार यादव

बड़ा कठिन है
टूटते परिवारों में रिश्तों की डोर थामें रखना ,
नहीं रही कोई अहमियत परिवारों से जुड़े पवित्र बंधन की ,
आलीशान मकानों के बीच छिप सा गया है घर ,
किसी ईट पत्थर की चुनाई में दरक रहा है विश्वास ,
अपनी छत के नीचे अब दीवारों से नहीं टकराते अनुभव बुजुर्गों के,
बच्चों को नहीं सुनने मिलती ,दादी नानी की कहानिया ,
नहीं होती शरारत देवर भाभी के बीच , मुंह फेर लेते हैं भाई भी नजर
टकराने पर ,ये सच है जर , जोरू , जमीन की ,।जंग छिड़ी है चहुंओर लेकिन अस्तित्व बचाने , मजबूत रखनी होगी रिश्तों की डोर ।
By

Mridul purohit, son of shantinath purohit, 6/129, khandu colony, banswada, rajasthan.

अन्तर्राष्ट्रीय हाईपर्टेन्शन डे-व्यंग [निर्मला जी ]

अब क्या कहें एक और दिन आ गया मनाने के लिये इन्ट्र्नैशनल हाईपरटेन्शन डे मै ये तो नही जानती कि इसे कैसे ? और किस को मनाना चाहिये ? मगर एक बात की खुशी है किमुझे इसे मनाने मे कोई ऐतराज या परेशानी नहि है आप लोग भी परेशान मत होईये हमरे देश मे आजकल ये दिन मनाने के लिये माहौल भी है और लोग भी हैं जिन्हें हाईपरटेन्शन हो गयी है उनमें कुछ तो वो जो प्रधानमंन्त्री बनने के सपने देख रहे थे ,पर सपने सपने ही रह गये और कुछ वो जो हार गये कुछ जो बन गये उन्हे आगे की चिन्ता सता रही है के मन्त्रीपद मिलेगा कि नहीं जो वर्कर्स हैं वो भी जोड तोड मे लगे हैं कि अब कौन कौन से लाभ उठायें इस लिये हर शहर मे बडे पैमाने पर ये दिन मनाया जाना चाहिये कि भाई सपने तो जरूर देखो मगर अपने कद और हैसियत के अनुसार अगर बडे सपने देखने ही हैं तो राहुल बाबा की तरह गलियों की खाक छानो और पसीन बहाओ टेन्शन चाहे फिर भी रहेगी पर हाईपरटेन्शन नही होगी इस तरह ये देश हाईपर्टेन्शन से मुक्त हो जायेगा याद रखो ये एक साईलेन्ट किलर है