रविवार, 15 मार्च 2009
प्रेम फैलाओ
क्षेत्रवाद कि बातें छोड़ो
प्रेम-वर्षा करते जाऒ
विष वमन में नहीं कुछ
अमर बेल तुम फैलाऒ
जाऒ समझाये उनको
बैर फैलाना नासमझी
उपद्रव से नहीं बनती
प्रेम शांती की बस्ती
देख रहा जग हमको
आशा भरी नजरों से
मत मचाऒ उपद्रव
शर्मों हया छोड़के
रोको, बहुत हुआ
ये जंगली खेल
चल पड़ो संकल्पित हो
बना ध्येय फैलाना प्रेम.
प्रस्तुति- कवि विनोद बिस्सा जी
प्रेम-वर्षा करते जाऒ
विष वमन में नहीं कुछ
अमर बेल तुम फैलाऒ
जाऒ समझाये उनको
बैर फैलाना नासमझी
उपद्रव से नहीं बनती
प्रेम शांती की बस्ती
देख रहा जग हमको
आशा भरी नजरों से
मत मचाऒ उपद्रव
शर्मों हया छोड़के
रोको, बहुत हुआ
ये जंगली खेल
चल पड़ो संकल्पित हो
बना ध्येय फैलाना प्रेम.
प्रस्तुति- कवि विनोद बिस्सा जी
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