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रविवार, 28 नवंबर 2010

क्षणिकाएं -----------(डा० ऋतु वार्ष्णेय )

क्षणिकाएं


(1) तुम कौन हो ?
एक पल
एक मौन
एक विश्वास
एक एहसास
या
सिर्फ छल ।


(2)आज शोर अनबना सा है
जैसे कुछ अनकहा सा है
कुछ शांत
कुछ मौन
सब शुन्य है .


(3) छोटा सा सत्य
अवचेतन मन का
छोटा सा सत्य
जो रेशे में कैद
समय की धारा में
संभावना की धुरी पर
टिककर
अपने अर्थ रचने का
उपक्रम करता हुआ
एकाएक
आकाश की सीमा भेद
उसे छुने की
क्षमता रखता है ।