डाल कर कुछ नीर की बूंदे अधर में
कर अकेला ही विदा अज्ञात सफ़र में
कुछ नेह मिश्रित अश्रु के कतरे बहाकर
संबंधों से अपने सब बंधन छूटाकर
डूबकर स्वजन क्षणिक विछोह पीर में
कुछ परम्परागत श्रद्धा सुमन करके अर्पित
धीरे -धीरे छवि तक तेरी भूल जायेंगे
आत्मीय भी नाम तेरा भूल जायेंगे
साथ केवल कर्म होंगे, माया न होगी
बस प्रतिक्रियायें जग की तेरे साथ होगी
फिर रिश्तों के सागर में मानव खोता क्यों है
जब एक न एक दिन तुझको चलना है