अचानक .........
छोड़ गई तुम मेरा साथ,
बुझा गयी अपना जीवन दीप,
बिना कुछ कहे,
बिना कुछ सुने
कर गयी मेरे जीवन में
कभी न ख़त्म होनेवाला
अँधियारा .........
जन्म-जन्मान्तर के लिए थामा था
तुमने मेरा हाथ ,
वेदी पर बैठ खाई थी कसमें
संग जीने ,संग मरने की ।
इतनी भी क्या जल्दी थी,
ऐसी भी क्या थी बात ,
जो मुझे छोड़ गयी -जीवन के दोराहे पर
यादों के अंतहीन सुरंग में
आखिरी सांस तक
भटकने के लिए ।
क्या करूंगा
ऐसा नीरस और निरर्थक जीवन
जिसमें तुम नहीं ,
तुम्हारा साथ नहीं ।
कैसे कटेगा दिन,
कैसे कटेंगी रातें
तेरे बिना!
हर पल-हर क्षण
याद आएगी तू,
तेरे साथ कटा जीवन,
तेरे साथ बटी बातें ,
घर के भीतर,घर के बाहर ,
हर जगह, हर- वक्त,
बस तू ही नजर आएगी ,
तेरा जाना
किसी भूचाल से कम नहीं
मेरे लिए ,
जिसने सारी आशाएं,
सारे अरमान धराशायी कर दिए मेरे ,
तोड़ दिए सपने सुहाने ,
जो देखे थे हमने साथ बिताने।
बेसहारा कर गयी मुझे
जब सहारे की जरूरत थी ।
तेरे बिन ठहर गई है रातें ,
ठहर गया है दिन ।
तेरा जाना........
सुनामी बन जायेगा
मेरे जीवन का
कभी सोचा ना था
और
मैं बनकर रह जाऊँगा
यादों की उछाल लेती लहरों पर
तैरती
जिन्दा लाश ।
दो किनारे थे हम - मैं और तुम ,
एक नदी के ।
एक किनारे की
नदी नहीं होती।
डंक मारते हैं बिच्छू की तरह ,
डसते हैं नाग सा ,
भर देते हैं जेहन
यादों के जहर से ।
तुम्हारी यादें
मुझे चैन से जीने नहीं देंगी ,
हर-पल झपट्टा मारती रहेंगी मुझपर,
चील-कौवों की तरह
और
नोंच -नोंचकर खाती रहेंगी
मेरे अस्तित्व को ,
खोखला करती रहेंगी
मेरा तन- मन ।
समय
ये घाव
कभी नहीं भर पायेगा ,
नहीं लगा पायेगा कोई मरहम,
मेरे जख्मों पर ।
कोई और नहीं ले पायेगा
तुम्हारी जगह
हर जगह
तुम-ही-तुम नजर आओगी मुझे,
हर-पल गूंजेगी मेरे कानों में
तेरी आवाज ,
हर-पल याद आएगा
तेरा साथ ।
कैसे भागूँगा
इस हकीकत से ,
उस हकीकत से ।
बच्चों में नहीं ढूंढ़ पाऊंगा
तेरा पर्याय ,
भीड़ में रह जाऊंगा,
बेहद अकेला।
रह जाएँगी मेरे साथ
ढेर सारी यादें
मेरे जाने तक
रुलाने के लिए , गुदगुदाने के लिए ......
छोड़ गई तुम मेरा साथ,
बुझा गयी अपना जीवन दीप,
बिना कुछ कहे,
बिना कुछ सुने
कर गयी मेरे जीवन में
कभी न ख़त्म होनेवाला
अँधियारा .........
जन्म-जन्मान्तर के लिए थामा था
तुमने मेरा हाथ ,
वेदी पर बैठ खाई थी कसमें
संग जीने ,संग मरने की ।
इतनी भी क्या जल्दी थी,
ऐसी भी क्या थी बात ,
जो मुझे छोड़ गयी -जीवन के दोराहे पर
यादों के अंतहीन सुरंग में
आखिरी सांस तक
भटकने के लिए ।
क्या करूंगा
ऐसा नीरस और निरर्थक जीवन
जिसमें तुम नहीं ,
तुम्हारा साथ नहीं ।
कैसे कटेगा दिन,
कैसे कटेंगी रातें
तेरे बिना!
हर पल-हर क्षण
याद आएगी तू,
तेरे साथ कटा जीवन,
तेरे साथ बटी बातें ,
घर के भीतर,घर के बाहर ,
हर जगह, हर- वक्त,
बस तू ही नजर आएगी ,
तेरा जाना
किसी भूचाल से कम नहीं
मेरे लिए ,
जिसने सारी आशाएं,
सारे अरमान धराशायी कर दिए मेरे ,
तोड़ दिए सपने सुहाने ,
जो देखे थे हमने साथ बिताने।
बेसहारा कर गयी मुझे
जब सहारे की जरूरत थी ।
तेरे बिन ठहर गई है रातें ,
ठहर गया है दिन ।
तेरा जाना........
सुनामी बन जायेगा
मेरे जीवन का
कभी सोचा ना था
और
मैं बनकर रह जाऊँगा
यादों की उछाल लेती लहरों पर
तैरती
जिन्दा लाश ।
दो किनारे थे हम - मैं और तुम ,
एक नदी के ।
एक किनारे की
नदी नहीं होती।
डंक मारते हैं बिच्छू की तरह ,
डसते हैं नाग सा ,
भर देते हैं जेहन
यादों के जहर से ।
तुम्हारी यादें
मुझे चैन से जीने नहीं देंगी ,
हर-पल झपट्टा मारती रहेंगी मुझपर,
चील-कौवों की तरह
और
नोंच -नोंचकर खाती रहेंगी
मेरे अस्तित्व को ,
खोखला करती रहेंगी
मेरा तन- मन ।
समय
ये घाव
कभी नहीं भर पायेगा ,
नहीं लगा पायेगा कोई मरहम,
मेरे जख्मों पर ।
कोई और नहीं ले पायेगा
तुम्हारी जगह
हर जगह
तुम-ही-तुम नजर आओगी मुझे,
हर-पल गूंजेगी मेरे कानों में
तेरी आवाज ,
हर-पल याद आएगा
तेरा साथ ।
कैसे भागूँगा
इस हकीकत से ,
उस हकीकत से ।
बच्चों में नहीं ढूंढ़ पाऊंगा
तेरा पर्याय ,
भीड़ में रह जाऊंगा,
बेहद अकेला।
रह जाएँगी मेरे साथ
ढेर सारी यादें
मेरे जाने तक
रुलाने के लिए , गुदगुदाने के लिए ......