पुरस्कृत रचना ( द्वितीय स्थान, हिन्दी साहित्य मंच द्वितीय कविता प्रतियोगिता)
तुम ढलो संगीत में तो स्वर सजाऊं।
सजनि तुम.................
प्रीति का हर रंग,
सजनि तुम................
सजनि तुम......................
शूरवीरों के सभी ,
रंग कलियों के हों,
मन की उमंग में।
प्रीति भंवरे सी हो,
तन की उमंग में।
गंध फ़ूलो की लिये ,
हर अन्ग में।
प्रीति बन उर में,
खिलो तो गुनुगुनाऊं।
सजनि तुम.................
श्वांस में मन की,
बनो निश्वांस तुम।
आस के हर रंग ,
का विश्वास तुम।
प्रीति का हर रंग,
तन-मन में लिये।
मीत बन मन में-
बसो तो मुस्कुराऊं।
सजनि तुम................
प्रीति के तो बहुत,
गाये हैं तराने।
चाहता हूं वतन के,
स्वर गुनगुनाने।
तुम को हो स्वीकार तो-
वे स्वर सजाऊं ।
मन बसी जो,रागिनी,
तुम को सुनाऊं।
सजनि तुम......................
देश की खातिर,
हुए कुर्बान कितने।
वे प्रणम्य शहीद ,और-
गुमनाम कितने
गीत गाते गुनगुनाते,
मुस्कुराते ।
हंसते-हंसते,शूलियों-
पर झूल जाते ।
शूरवीरों के सभी ,
विस्म्रत तराने ।
चाहता हूं मैं,सभी-
वो गीत गाने ।