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बुधवार, 16 सितंबर 2009

सजनि! तुम सुर में सजो तो गीत गाऊं-----" -डा. श्याम गुप्त"

पुरस्कृत रचना ( द्वितीय स्थान, हिन्दी साहित्य मंच द्वितीय कविता प्रतियोगिता)

सजनि! तुम सुर में सजो तो गीत गाऊं।


तुम ढलो संगीत में तो स्वर सजाऊं।


रंग कलियों के हों,

मन की उमंग में।

प्रीति भंवरे सी हो,

तन की उमंग में।


गंध फ़ूलो की लिये ,


हर अन्ग में।


प्रीति बन उर में,


खिलो तो गुनुगुनाऊं।


सजनि तुम.................



श्वांस में मन की,


बनो निश्वांस तुम।


आस के हर रंग ,


का विश्वास तुम।


प्रीति का हर रंग,


तन-मन में लिये।


मीत बन मन में-


बसो तो मुस्कुराऊं।



सजनि तुम................



प्रीति के तो बहुत,


गाये हैं तराने।


चाहता हूं वतन के,


स्वर गुनगुनाने।


तुम को हो स्वीकार तो-


वे स्वर सजाऊं ।


मन बसी जो,रागिनी,


तुम को सुनाऊं।



सजनि तुम......................



देश की खातिर,


हुए कुर्बान कितने।


वे प्रणम्य शहीद ,और-


गुमनाम कितने


गीत गाते गुनगुनाते,


मुस्कुराते ।


हंसते-हंसते,शूलियों-



पर झूल जाते ।


शूरवीरों के सभी ,


विस्म्रत तराने ।


चाहता हूं मैं,सभी-


वो गीत गाने ।