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शनिवार, 16 जनवरी 2010

ये हक है मेरा

बहुत कुछ बदल जाने के बाद भी ,
आज न जाने क्यूँ तुम्हारी यादें वैसी ही हैं ,
जैसे की पहले हुआ करती थी ,
मुझे पता है कि तुमसे कह नहीं सकता कुछ भी ,
बता नहीं सकता अपनी बातों को ,
पर फिर भी खुद को ही अच्छा लगता है सोचना ये ,
जिसे तुमने आकर्षण कहा,
दोस्ती कहा
या
कभी प्यार का नाम दिया ,
उनमें से कोई रिश्ता आज कायम नहीं ।

मैं सोचता हूँ सारी पुरानी बातें ,
जिसमें केवल मैं होता था और तुम होती थी ,
जो अब झूठी लगती हैं ,
एक धोखा लगती हैं ,
ये सब सोच के दर्द सा होता
पर भी ,
ये दिल है कि तुमको ही याद करता हैं ,

खामोश रात में बंद आखें तुमको ही खोजती हैं ,

फिर दिन के उजाले में तुम कहीं गुम हो जाती हो ,
इस तरह से आना जाना खुद को नहीं भाता ,
पर
मजबूर हूँ मैं जो तुम्हारी यादो से आज भी नहीं निकल पाता,

कभी कसम खाता हूँ ,
फिर तोड़ देता हूँ उसको तुम्हारे लिए ,
जब अब ये पता है कि
तुम मेरी नहीं हो ,
कभी भूल जाने का वादा अब तो हर रोज ही तोड़ता हूँ ,
शायद कभी मिल जाओं तो बातऊगा तुमको सारी बातें दिल,
कहूँगा जज्बात दिल के ,
और जाने नहीं दूंगा इस बार मैं ,
ये जिद मेरी रहती है अपने आपसे ,
जबकि ये जानता हूँ- ये कल्पना है इसके सिवा कुछ भी नहीं ,
पर इस तरह सोच के खुद को , बहलाता हूँ ,
तुमको अपने करीब पाता हूँ ,
ये हक मेरा तुम नहीं छिन सकती,
ये तुम भी नहीं जानती ,
याद करता हूँ और करता रहूँगा ,
ये जानलो तुम ।