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शुक्रवार, 1 मई 2009

मजदूर (श्रमिक दिवस पर विशेष)

जब भी देखता हूँ
किसी महल या मंदिर को
ढूँढने लगता हूँ अनायास ही
उसको बनाने वाले का नाम
पुरातत्व विभाग के बोर्ड को
बारीकी से पढ़ता हूँ
टूरिस्टों की तीमारदारी कर रहे
गाइड से पूछता हूँ
आस-पास के लोगों से भी पूछता हूँ
शायद कोई सुराग मिले
पर हमेशा ही मिला
उन शासकों का नाम
जिनके काल में निर्माण हुआ
लेकिन कभी नहीं मिला
उस मजदूर का नाम
जिसने खड़ी की थी
उस मंदिर या महल की नींव
जिसने शासकों की बेगारी कर
इतना भव्य रूप दिया
जिसकी न जाने कितनी पीढ़ियाँ
ऐसे ही जुटी रहीं महल व मंदिर बनाने में
लेकिन मेरा संघर्ष जारी है
किसी ऐसे मंदिर या महल की तलाश में
जिस पर लिखा हो
उस मजदूर का नाम
जिसने दी उसे इतनी भव्यता !!!
कृष्ण कुमार यादव
भारत सरकार की सिविल सेवा में अधिकारी होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य में भी जबरदस्त दखलंदाजी रखने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कृष्ण कुमार यादव का जन्म १० अगस्त १९७७ को तहबरपुर आज़मगढ़ (उ. प्र.) में हुआ. जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर-आज़मगढ़ एवं तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९९९ में आप राजनीति-शास्त्र में परास्नातक उपाधि प्राप्त हैं. समकालीन हिंदी साहित्य में नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सरिता, नवनीत, आजकल, वर्तमान साहित्य, उत्तर प्रदेश, अकार, लोकायत, गोलकोण्डा दर्पण, उन्नयन, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, आज, द सण्डे इण्डियन, इण्डिया न्यूज, अक्षर पर्व, युग तेवर इत्यादि सहित 200 से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं व सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, रचनाकार, लिटरेचर इंडिया, हिंदीनेस्ट, कलायन इत्यादि वेब-पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन. अब तक एक काव्य-संकलन "अभिलाषा" सहित दो निबंध-संकलन "अभिव्यक्तियों के बहाने" तथा "अनुभूतियाँ और विमर्श" एवं एक संपादित कृति "क्रांति-यज्ञ" का प्रकाशन. बाल कविताओं एवं कहानियों के संकलन प्रकाशन हेतु प्रेस में. व्यक्तित्व-कृतित्व पर "बाल साहित्य समीक्षा" व "गुफ्तगू" पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी. शोधार्थियों हेतु आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" शीघ्र प्रकाश्य. आकाशवाणी पर कविताओं के प्रसारण के साथ दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में कवितायेँ प्रकाशित. विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित. अभिरुचियों में रचनात्मक लेखन-अध्ययन-चिंतन के साथ-साथ फिलाटेली, पर्यटन व नेट-सर्फिंग भी शामिल. बकौल साहित्य मर्मज्ञ एवं पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज'- " कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्चपदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरंतर बेचैन रहता है. उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व संतुलन है. वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ साहित्यकार हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षड्यंत्रों और पाखंडों का बड़ी मार्मिकता के साथ उदघाटन करते हैं."सम्प्रति/सम्पर्क: कृष्ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्डल, कानपुर

गुरूसहाय भटनागर ‘बदनाम' की एक गजल

खुदा मिल गया


तुम जो मिले तो जहां मिल गया है।

मोहब्बत में हमको खुदा मिल गया है।।


मेरी जिन्दगी में अचानक ही आना,
खुशियों भरा गुलसिताँ मिल गया है।


हंसी मुझको लगने लगी आज दुनियां,
तारों भरा एक जहां मिल गया है।


छुटायेगी दुनिया जुदा अब न होगें,
अब तो ‘बदनाम’ को आस्तां मिल गयाहै।