आज की पीढी बन रही कितनी अजीब है
बेईमानी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार और बड़ों की अवज्ञा इनकी तहजीब है
लगता है मिट रही है भारतीय सभ्यता का सुरम्ब चित्रण
आख़िर अब हम क्या करें, कैसे करें इसका परित्र्ण
हर गली, नुक्कड़ और चौराहों पर मिल जाती है अशलीलता
मनो अब विलुप्त हो रही है शालीनता
टीवी, रेडियो और समाचार पत्रों में भी इसी का बोल बाला है
नव युवकों के दिलो दिमाग में इसी ने डेरा डाला है
अब हर जगह पर "बिपासा", "राखी" और कैटरीना के गंदे गायन होते है
शायद इन्ही की वजह से हम अपनी सभ्यता को खोते हैं
मेरी समझ में आता नही, भारत सरकार आखिर क्यों देती है इनको अशलीलता फैलाने का
अधिकार ?
क्या इसे है भारत की दुर्दशा स्वीकार ?
हो रहा है आज जो क्या यही वाजिब है
क्या यही "ऋषि" "मुनियों" की तपोभूमि की तहजीब है
आज की पीढी बन रही कितनी अजीब है
बेईमानी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार और बड़ों की अवज्ञा इनकी तहजीब है
लगता है मिट रही है भारतीय सभ्यता का सुरम्ब चित्रण
आख़िर अब हम क्या करें, कैसे करें इसका परित्र्ण
हर गली, नुक्कड़ और चौराहों पर मिल जाती है अशलीलता
मनो अब विलुप्त हो रही है शालीनता
टीवी, रेडियो और समाचार पत्रों में भी इसी का बोल बाला है
नव युवकों के दिलो दिमाग में इसी ने डेरा डाला है
अब हर जगह पर "बिपासा", "राखी" और कैटरीना के गंदे गायन होते है
शायद इन्ही की वजह से हम अपनी सभ्यता को खोते हैं
मेरी समझ में आता नही, भारत सरकार आखिर क्यों देती है इनको अशलीलता फैलाने का
अधिकार ?
क्या इसे है भारत की दुर्दशा स्वीकार ?
हो रहा है आज जो क्या यही वाजिब है
क्या यही "ऋषि" "मुनियों" की तपोभूमि की तहजीब है
आज की पीढी बन रही कितनी अजीब है