क्या धरा, क्या व्योम
नव-प्रेरणा देता प्रकृति का रोम-रोम
प्रभा की बेला देती
जीवन में नव उमंग भर
परसेवा को प्रेरित करते तरुवर
प्रिय के वियोग में जब
प्रीत-गीत छेड़ते विहाग
स्पंदित हो उठता ह्रदय
छट जाते जन्मो के मर्म विषाद
स्वेत श्याम रूप धर
नीलाम्ब में जब बदल इठ्लाएं
अमृत बूँद गिरे धरा पर
मन-मानस पुलकित हो जाए...