सकल विश्व तुम में स्थित प्रिय,अखिल विश्व में तुम ही तुम हो |
तुम तुम तुम तुम , तुम ही तुम
तेरी वींणा के ही नाद से, जीवन
तेरी स्वर लहरी से ही प्रिय,जी
ज्ञान चेतना मान तुम्ही हो ,जग
तुम जीवन की ज्ञान लहर हो,भाव
अंतस मानस या अंतर्मन ,अंतर्हृ
अंतर्द्वंद्व -द्वंद्व हो तुम
तेरा प्रीति निनाद न होता , जग
जग के कण कण, भाव भाव में,केवल तुम हो,तुम ही
जग कारक जग धारक तुम हो,तुम तु
तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो
तुम्ही शक्ति, क्रिया, कर्ता हो
इस विराट को रचने वाली, उस विरा
दया कृपा अनुरक्ति तुम्ही हो,
अखिल भुवन में तेरी माया,तुझ मे
गीत हो या सुर संगम हे प्रिय!,
सकल विश्व के गुण भावों में, तु
तेरी प्रीति-द्रष्टि का हे प्रिय, श्याम के तन मन पर साया हो |
मन के कण कण अन्तर्मन में, तेरी प्रेम -मयी छाया हो ।
श्रिष्टि हो स्थिति या लय हो प्रिय!, सब कारण का कारण, तुम हो ।
तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो,तुम तुम तुम प्रिय, तुम ही तुम हो ॥