अक्सर
माँ को भी याद आती है
अपनी माँ की हर बात
उसका वो
नर्म हाथो से रोटी का निवाला खिलाना
होस्टल छोडने जाते हुए वो डबडबाई आखों से निहारना
उसका पल्लू पकड़कर आगे पीछे घूमना
उसके प्यार की आचँ से तपता बुखार उतर जाना
कम अंक लाने पर उसका रुठना पर जल्दी ही मान जाना
अक्सर
माँ को भी याद आती है
अपनी माँ की हर बात
पर माँ तो माँ है
इसलिए बस चंद पल खुद ही सिसक लेती है
और फिर भुला देती है खुद को
पाकर अपने बच्चो को प्यार भरी
छावँ मे,दुलार मे ,मनुहार में
पर अक्सर
माँ को भी याद आती है
अपनी माँ की हर बात
माँ को भी याद आती है
अपनी माँ की हर बात
उसका वो
नर्म हाथो से रोटी का निवाला खिलाना
होस्टल छोडने जाते हुए वो डबडबाई आखों से निहारना
उसका पल्लू पकड़कर आगे पीछे घूमना
उसके प्यार की आचँ से तपता बुखार उतर जाना
कम अंक लाने पर उसका रुठना पर जल्दी ही मान जाना
अक्सर
माँ को भी याद आती है
अपनी माँ की हर बात
पर माँ तो माँ है
इसलिए बस चंद पल खुद ही सिसक लेती है
और फिर भुला देती है खुद को
पाकर अपने बच्चो को प्यार भरी
छावँ मे,दुलार मे ,मनुहार में
पर अक्सर
माँ को भी याद आती है
अपनी माँ की हर बात