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शनिवार, 30 जनवरी 2010

एक प्रेम कहानी ऐसी भी [कहानी]---अनिल कान्त

रात लौट आई लेकर फिर से वही ख्वाब
कई बरस पहले सुला आया था जिसे देकर थपथपी


कमबख्त रात को भी अब हम से बैर हो चला है

अक्सर कहानी शुरू होती है प्रारंभ से...बिलकुल शुरुआत से...लेकिन इसमें ऐसा नहीं...बिलकुल भी नहीं...ये शुरू होती है अंत से...जी हाँ दी एंड से...कहानी का नहीं...उनके प्यार का...हाँ वहाँ से जहाँ से उनका प्यार ख़त्म होता है...उनकी आखिरी मुलाकात के साथ...जब प्रेरणा और अभिमन्यु आखिरी बार मिलते हैं...प्रेरणा की शादी के साथ..


और फिर 5 साल बाद.....


एक छोटा सा स्टेशन है...गाडी रूकती है...स्टेशन सुनसान है...अभिमन्यु ट्रेन से उतरता है...एक परिवार और उतरा है...उन्हें लेने कोई आया है...वो उन्हें लेकर चले जाते हैं...अभिमन्यु काले कोट वाले साहब से कुछ पूंछता है...उसके बाद वो आगे बढ़ जाता है...वहाँ बैंच दिखाई दे रही हैं...वो वहाँ बैठ जाता है...पीछे की बैंच पर कोई शौल ओढे बैठा है...हाड कपाने वाली ठण्ड में वो कुछ ज्यादा गर्म कपडे नहीं पहने हुए...अपनी फिक्र करना छोड़ दिया है उसने...वो सिगरेट जला लेता है...धुंआ उड़कर बादलों सा आस पास पसरने लगता है पीछे से खांसने की आवाज़ आने लगती है...एक्सक्यूज मी, प्लीज....अभिमन्यु आवाज़ सुनकर अचानक से मुड़ता है...क्योंकि ये आवाज़ तो जानी पहचानी थी...हाँ ये प्रेरणा की आवाज़ थी...उधर प्रेरणा भी अभिमन्यु को देखकर अजीब सी रह जाती है....कुछ पल के लिए सन्नाटे में भी एक ऐसा सन्नाटा पसर जाता है...ठीक वैसा ही सन्नाटा जैसा दोनों के बीच उस आखिरी मुलाक़ात पर पसरा था....जो आज तक खामोशी कायम किये हुए था....

प्रेरणा तुम...अभिमन्यु बोलता है...हाँ अभिमन्यु के लिए तो ये एक ख्वाब जैसा ही था उसे दोबारा देखना...और फिर दोनों बैंच की एक ही तरफ बैठ जाते हैं....कुछ सवाल प्रेरणा की आँखों में थे तो कुछ अभिमन्यु की में...पर दोनों खामोश...सिगरेट का धुंआ अभी भी उड़ रहा था...छोड़ी नहीं ये आदत...प्रेरणा के सवाल के साथ सन्नाटा ख़त्म होता है....ह्म्म्म...अभिमन्यु प्रेरणा की तरफ देखता है....फिर सिगरेट की तरफ...आदतें....आदतें....ये आदतें भी अजीब होती हैं....कुछ अपने आप छूट जाती हैं....और कुछ चाहने पर भी नहीं छूटती....फिर से पीना कब शुरू कर दी...प्रेरणा कहती है...पता नहीं कब शुरू हुई...ठीक से अब तो याद भी नहीं...खैर...तुम यहाँ...कैसे...वो यहाँ के नवोदय विद्यालय में नौकरी मिल गयी है...अच्छा कब से...1 साल हो गया...और आप...ह्म्म्म...सरकारी नौकरी जब जहाँ भेज दें चला जाता हूँ....वैसे यहाँ एक कंपनी है उसका सोफ्टवेयर बनाने का प्रोजेक्ट मिला हुआ है...उसी के सिलसिले में....ओह अच्छा...पहली बार आना हुआ है आपका....हाँ...यहाँ से जाने के लिए बस तो सुबह ही मिलेगी...हाँ वो काले कोट वाले भाई साहब बता रहे थे...

एक बहुत ही ठंडी हवा का झोंका अभिमन्यु के कानों से गुजरता है...अभिमन्यु कपकपाने लगता है...ये क्या दो कपडों में इतनी ठण्ड में चले आये...मालूम है कि इतनी ठण्ड है फिर भी....प्रेरणा अपना बैग खोलकर गरम शौल देखने लगती है....अरे नहीं मेरे पास है वो...माँ ने चलते वक़्त रख दिया था...प्रेरणा शौल निकालकर देती है...ओढ़ लीजिये इसे जल्दी से...अभिमन्यु के मुंह से माँ के बारे में सुनकर...माँ कैसी हैं...अभिमन्यु शौल ओढ़ते हुए...अच्छी हैं...चलते वक़्त तमाम हिदायतें दे रही थीं...

तभी प्रेरणा को याद आता है वो बीता हुआ पल...जब प्रेरणा अभिमन्यु से कहती है "क्या माँ बहुत प्यार करती हैं...हाँ बहुत...बहुत प्यार करती हैं...बहुत प्यारी हैं...वो तुम्हें मुझसे भी ज्यादा चाहेंगी देखना तुम...अच्छा...सच...हाँ वो अपनी बहू के बहुत ख्वाब बुनती हैं"...फिर एक ही पल में प्रेरणा अतीत से उस बैंच पर लौटती है...और मन ही मन सोचती है...उनकी बहू के बारे में....अभिमन्यु की बीवी के बारे में....पर सोचती है कि वो क्या हक़दार है ये पूँछने की....वो बस सोचकर रह जाती है....पूंछती नहीं...

ठाकुर साहब कैसे हैं ? अभिमन्यु सवाल की तरह पूँछता है प्रेरणा से...वो जानती है कि वो उसके पापा के बारे में पुँछ रहा है....हाँ यही तो कहता था...अभिमन्यु उन्हें...ठाकुर साहब....वो अच्छे हैं...पहले की ही तरह...प्रेरणा अभिमन्यु की तरफ देखती है पर कुछ कहती नहीं...अभिमन्यु सिगरेट जला लेता है...एक वो समय भी था जब प्रेरणा के एक बार कहने पर अभिमन्यु ने सिगरेट छोड़ दी थी....कभी नहीं पीता था फिर....धुएं के साथ एक वो सच भी धुंधला सा पड़ गया...

अभिमन्यु इधर उधर देखता है...कुछ तलाशता सा...चाय वाला कहीं...प्रेरणा अपने बैग से थर्मस निकाल कर अभिमन्यु की तरफ चाय बढाती है...ये चाय...वो मैंने चाय की दुकान बंद होने से पहले ही थर्मस में भरवा ली थी...आज भी उस्ताद हो...थैंक यू कहते हुए अभिमन्यु चाय ले लेता है...और मन ही मन सोचता है कि प्रेरणा तो शुरू से ही उस्ताद थी...हर काम में...ख्याल रखने में हर बात का...

अभिमन्यु अपने बैग की जेब तलाशने लगता है...क्या हुआ...देख रहा हूँ शायद कुछ खाने को पड़ा हो....अरे मेरे पास है ना...प्रेरणा अपने बैग से नमकीन निकालती है...तब तक अभिमन्यु अपने बैग से कुछ निकालता है....अरे गुजिया...प्रेरणा कहती है....माँ ने बनायीं है....हाँ....लो जानता हूँ तुम्हें बहुत पसंद है....प्रेरणा गुजिया लेती है...खाती हुई कहती है...आपकी बीवी तो बड़ी किस्मत वाली होगी जो इतनी प्यारी माँ मिली उन्हें...नहीं किस्मत ने माँ का साथ नहीं दिया...क्या मतलब...प्रेरणा बोली....प्यार लुटाने के लिए बहू का होना भी बहुत जरूरी है....कहते हुए अभिमन्यु चाय का घूँट गले से नीचे उतारता है...अभी...प्रेरणा के मुंह से निकला...और वो अभिमन्यु के चेहरे की तरफ देख रही थी...ढेर सारे सवाल...और ढेर सारी पुरानी बातें साफ साफ प्रेरणा के चेहरे पर पढने को मिल जाती इस समय...

खैर मेरा छोडो....तुम बताओ...तुम इतना दूर कैसे नौकरी करने आ गयी...तुम्हारे पति कहाँ हैं आजकल...ऐसा सवाल जिससे बचने के लिए वो यहाँ सबसे दूर पड़ी थी...आखिरकार बरसों बाद पूंछा गया....और वो भी उस इंसान ने जिसके एक तरफ जिंदगी कुछ और थी...और उसके परे जिंदगी कुछ और...

प्रेरणा के चेहरे पर खामोशी छा गयी...वो कुछ नहीं बोली...सिगरेट का एक कश लेकर धुंआ छोड़ते हुए उसने कहा...तुमने जवाब नहीं दिया...प्रेरणा नमकीन का पैकेट बैग में रखने लगी...और थर्मस को भी उसने बैग में रखना चाहा...एक अजीब सी खामोशी लिए हुए...अभिमन्यु के लिए ये खामोशी एक लम्बा सवाल बन चुकी थी...अभिमन्यु ने बोला....बोलती क्यों नहीं क्या हुआ...प्रेरणा के खामोश चेहरे की आँखें भर आई...अभिमन्यु उसकी आँखों की नमी को अपने दिल की गहराइयों तक महसूस करता है....क्या...प्रेरणा के मुंह से बस इतना निकला वो अब नहीं हैं....सिगरेट सुलग कर अभिमन्यु का हाथ जला देती है...उसके हाथ से सिगरेट छूट जाता है....प्रेरणा की आँख से आंसू की बूँद टपक जाती है....मतलब क्या, कैसे....अभिमन्यु पूँछता है....एक रोड एक्सीडेंट और फिर सब ख़त्म....आज बरसों बाद अभिमन्यु की आँख भर आई...एक दर्द फिर से हरा हो गया....क्योंकि वो दुखी थी....कब...कब हुआ....शादी के एक साल बाद...प्रेरणा बोली....और आँसू थे जो रुक ही नहीं रहे थे....और तुम पिछले 4 साल से....बोलते हुए अभिमन्यु उसके रोते हुए चेहरे को देखता रह गया....दोनों के बीच एक लम्बी खामोशी छा गयी...

ये खामोशी भी बहुत अजीब होती है...कमबख्त खामोशी में ऐसा जान पड़ता है कि बस साँसों के चलने की ही आवाज़ आ रही हो...आज की खामोशी अभिमन्यु को उस मुलाकात की खमोशी पर पहुंचा देती है...तब भी उसके पास कहने को कुछ नहीं बचा था और आज भी वो क्या कहे उसे समझ नहीं आ रहा था...लेकिन वो प्रेरणा को इस तरह रोते हुए, दुखी नहीं देख सकता था...वो बात बदलने के उद्देश्य से बोलता है...यहाँ क्या पढ़ाती हो...'वही अंग्रेजी' प्रेरणा जवाब देती है...तो मोहतरमा बच्चों को अंग्रेज बना रही हैं...आप आज तक नहीं कहती हुई प्रेरणा चुप हो जाती है...नहीं सुधरे यही कहना चाहती हो ना...मैं कैसे सुधर सकता हूँ...प्रेरणा थोडी सी मुस्कुरा जाती है...अभिमन्यु भी यही चाहता था...

फिर कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर जाता है...दोनों ही कुछ सोचने लगते हैं...शादी क्यों नहीं कर लेते...कब तक यूँ ही भटकते रहोगे...प्रेरणा, अभिमन्यु से कहती है...और फिर माँ को भी तो अपनी बहू पर लाड, प्यार लुटाना है ...उनसे उनका हक़ क्यों छीनते हो...अभिमन्यु प्रेरणा की आँखों में देखता है फिर सिगरेट की डिब्बी निकाल लेता है...सिगरेट जलाकर एक कश लेता है...धुंआ फैलाता है...फिर कहता है...जानती हो प्रेरणा बचपन में माँ ने एक कहानी सुनाई थी...एक पंक्षी की कहानी...माँ कहती थी कि एक ऐसा पंक्षी होता है जो बारिश कि उस पहली बूँद का इंतज़ार करता है जो बहुत दिनों बाद होती है(एक ख़ास बारिश)...और अगर वो उसे ना पी पाए तो फिर वो बाकी की बूंदों के बारे में सोचता ही नहीं...और उसके साथ ही अगला कश लेकर धुंआ उड़ा देता है...प्रेरणा अभिमन्यु के चेहरे को देखती रह जाती है....और फिर वैसे भी कोई लड़की मुझे पसंद ही नहीं करती...कोई शादी ही नहीं करना चाहती...कहता हुआ मुस्कुराता है...और उठकर टहलने लगता है...

वैसे भी किसी ने कहा है 'हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता'...वैसे चाँद मियाँ अपनी ड्यूटी पर हैं देखो अभी भी चमक रहे हैं...शायद आज चाँदनी रात है...हाँ शायद (प्रेरणा बोलती है)...तभी अभिमन्यु शौल हटाकर ठंडी चल रही हवा को शरीर से छूता है...हू-हू-हू-हू...अरे बहुत ठण्ड है...वैसे तुम्हें चाँदनी रात बहुत पसंद थी ना...तब जानती नहीं थी ठीक से कि अमावस्या भी होती है और शायद किसी किसी की जिंदगी पूरी अमावस्या की तरह ही होती है...प्रेरणा कहती है...इधर आ जाइये और शौल ओढ़ लीजिये ठण्ड लग जायेगी...

अभिमन्यु को ये बात अन्दर तक लगती है...कहीं ना कहीं दिल बुरी तरह चकनाचूर हुआ पड़ा है...जीने की तमन्ना ही जाती रहती है इंसान के पास से तब ऐसा ही होता है...शायद ऐसा ही कुछ...फिर अभिमन्यु घडी देखता है अभी करीब 1 घंटे में सुबह हो जायेगी...कितना दूर है तुम्हारा हॉस्टल...यही कोई 4-5 किलोमीटर दूर होगा...ह्म्म्म्म कहते हुए आकर बैंच पर बैठ जाता है

कितनी ही बातें थीं प्रेरणा के पास कहने के लिए मगर सिर्फ सोच ही रही थी वो...और अभिमन्यु अपनी सोच में डूबा हुआ था..आलम यह था कि दोनों बैंच पर बैठे थे और बिल्कुल खामोश...सोचते सोचते कब वक़्त बीत जाता है पता ही नहीं चलता...अचानक से अभिमन्यु ऐसे उठता है जैसे नींद से जागा हो...फिर घडी की तरफ देखता है...अरे सुबह हो गयी...प्रेरणा कहती है हाँ...चलो चलते हैं अब...

दोनों स्टेशन से बाहर निकल आते हैं...बाहर बस खड़ी थी और पास ही एक तांगा...अभिमन्यु तांगा देखकर बोलता है...अरे चलो तांगे में चलते हैं...प्रेरणा कहती है तांगे में क्यों...अरे चलो ना तांगे में अच्छा लगेगा...वो तांगे वाले के पास जाते हैं...वो बताता है कि पहले स्कूल पड़ेगा फिर वो कंपनी...अभिमन्यु कहता है ठीक है चलो बैठ जाते हैं इसमें...

छोटा सा और बहुत हरा भरा सा पहाड़ी क़स्बा था...तांगे में बैठकर सफ़र करने में अलग ही आनंद आ रहा था...अभिमन्यु तांगे वाले से मजाक के लहजे में कहता है...अरे भाई इसमें एफ.एम रेडियो है क्या...वो कहता है क्या साहब आप मजाक बहुत करते हैं...अच्छा तो तुम फिल्मों की तरह कोई गाना ही सुना दो...साहब गाना तो नहीं आता...अच्छा ये तो बहुत गलत बात है...उधर प्रेरणा थोडा मुस्कुराती सी है...अच्छा तो कितने बाल बच्चे हैं आपके...एक है...बस एक ही, हम तो सोच रहे थे 4-5 तो होंगे ही...अरे साहब ऐसी भूल तो हम कतई नहीं कर सकते...क्यों भला...अरे हमारे बापू जो थे उन्होंने 11 बच्चे पैदा किये थे...पूरी 10 लड़कियों के बाद हमे पैदा करने के वास्ते...और फिर सारी जिंदगी शादियाँ ही करते रह गए...प्रेरणा अपने मुंह पर हाथ रख लेती है और फिर दूसरी तरफ देखने लगती है...अभिमन्यु मन में ही कुछ बोलता सा है...'बहुत मेहनती थे जैसा कुछ'...

तांगे वाला पूंछता है आप लोगन के बच्चे नज़र नहीं आते...लगता है अभी नयी नयी शादी हुई है...प्रेरणा और अभिमन्यु एक दूसरे की आँखों में देखते हैं...फिर नज़रें हटा लेते हैं...कहीं और देखने लगते हैं...धीरे धीरे बातों ही बातों में सफ़र कट जाता है...प्रेरणा का हॉस्टल आ जाता है...प्रेरणा अपना बैग उठा कर उस पर से उतरती है...अभिमन्यु उसके चेहरे की तरफ़ देखता है...शायद कुछ बोलना चाहता है...पर खामोश है...उधर प्रेरणा भी कुछ कहना चाहती है...पर वो भी सोच कर रह जाती है...वो चल देती है...अभिमन्यु कहता है...कभी कोई जरूरत हो, कोई परेशानी हो मुझे याद करना...और अपना कार्ड उसे दे देता है...प्रेरणा कार्ड ले लेती है...फिर उसके बाद अभिमन्यु तांगे में बैठ अपने ऑफिस की तरफ चल देता है


"लेकर सर पे अपने आई रात पोटली
बैठ सिरहाने मेरे वो तमाम छोड़ गयी उलझनें

डरता हूँ कहीं दिन यूँ ही ना बीत जाए"

अभिमन्यु जानता था कि प्रेरणा कभी फ़ोन नहीं करेगी...कुछ दिन अभिमन्यु अपनी ऑफिस में व्यस्त रहा...और कंपनी के ही दिए हुए घर में रहने लगा...ऐसा नहीं था कि वो प्रेरणा को याद नहीं करता बल्कि वो ये सोचता कि कहीं उसकी वजह से वो और ज्यादा परेशां ना हो...

एक शाम मार्केट में एक रेस्टोरेंट में वो बैठा हुआ था...तभी वहाँ प्रेरणा का आना हुआ...प्रेरणा ने उसे देख लिया...वो उसके पास ही आकर बैठ गयी...क्या लोगी...कुछ खाना है या पीना है...नहीं कुछ नहीं...अरे...ठीक है एक कॉफी...अरे भाई जान दो कॉफी ले आना...अभिमन्यु आवाज़ देता है...तो यहाँ कैसे...कुछ नहीं वो कुछ सामान लेने आई थी...अच्छा...अभिमन्यु प्रेरणा की आँखों में झाँकता है...फिर कहता है काफी बदल गयी हो...क्यूँ क्या हुआ प्रेरणा बोली...चाल ढाल, कपडे पहनने का अंदाज...लगता है स्मिता पाटिल की कोई फिल्म देख रहा हूँ...प्रेरणा हल्का सा मुस्कुरा जाती है...

तभी कॉफी आ जाती है...अरे एक मिनट में आता हूँ...अभिमन्यु प्रेरणा को बाथरूम जाने का इशारा करता है...उसके जाने के बाद अचानक से प्रेरणा की नज़र अभिमन्यु की डायरी पर पड़ती है...वो जानती थी की अभिमन्यु लिखता भी है...वो यूँ ही उसकी डायरी उठाकर पन्ना खोल लेती है...उस पर एक कविता लिखी हुई थी....कविता क्या थी दर्द की खान थी...उससे रहा नहीं गया और उसने वो बंद कर दी...थोडी देर में ही अभिमन्यु आ जाता है...प्रेरणा कॉफी पीते हुए बार बार अभिमन्यु को देख रही थी और अभिमन्यु प्रेरणा को...तो अभी भी लिखते हो डायरी...अभिमन्यु थोडा सा मुस्कुरा जाता है...हाँ कभी कभी लिख लेता हूँ

प्रेरणा कहना चाहती थी की क्यों अपनी जिंदगी ख़राब कर रहे हो...पर वो कह नहीं पाती...कुछ भी कहने से पहले उसे हमेशा ख्याल आ जाता था कि वो ये हक़ तो कब का खो चुकी है...कॉफी ख़त्म हो जाती है...वो कहती है अच्छा अब चलती हूँ मुझे जल्दी जाना है...ह्म्म्म ठीक है चलो मैं भी चलता हूँ तुम्हें वहाँ छोड़ दूंगा...प्रेरणा नहीं चाहती थी कि अब और ज्यादा अभिमन्यु उससे मिले और दिल ही दिल में परेशां रहे...वो बहाना करती है नहीं उसे एक और काम है...वो चली जायेगी...अभिमन्यु ज्यादा जिद नहीं करता और उसे जाने देता है

वो कहते हैं ना कि कुछ रिश्ते एहसास से जुड़े होते हैं...जिनमें बंदिशें नहीं होती...पवित्रता और एक दूसरे से जुडाव ही एक दूसरे की तरफ खींच लेते हैं...वहाँ रिश्ता बनाना नहीं पड़ता...खुद ब खुद कायम हो जाता है...ऐसा ही रिश्ता था अभिमन्यु और प्रेरणा का रिश्ता...यूँ ही जब तब प्रेरणा और अभिमन्यु टकराने लगे...ना चाहते हुए भी मिल जाते...और बातें होती...वही एक दूसरे को देखना...महसूस करना और कुछ ना कहना...प्रेरणा के लिए तो अजीब दुविधा थी...उसने बहुत कुछ सहा था इन पिछले 5 सालों में...पहले अपना प्यारा खोया और फिर अपना सुहाग...और फिर पिछले अजीबो गरीब 4 साल...जो कैसे बीते वो तो बस प्रेरणा ही जानती थी

उस दिन अभिमन्यु प्रेरणा से मिला और उससे शाम को पास की ही पहाड़ी पर घुमाने के लिए कहा...प्रेरणा पहले तो मना करना चाहती थी लेकिन फिर उसके मन ने मना नहीं किया...शायद अब वो एक रिश्ते से जुड़ने लगी थी...उसने आने के लिए बोल दिया

शाम को दोनों उस पहाड़ी पर बैठे हैं...चारों और बादल घिर आते हैं...ठंडी ठंडी रूमानी हवा बह रही है...अभिमन्यु प्रेरणा से कहता है...याद है तुम्हें वो एक दिन जब हम यूँ ही इसी तरह पानी से भरे हुए बादलों के नीचे बैठे हुए थे...उस जगह जहां हम अक्सर मिलते थे...प्रेरणा अपने अतीत में चली जाती है जहाँ प्रेरणा अभिमन्यु के सीने पर सर रख कर बैठी हुई थी...और प्यारी प्यारी बातें करती थी...कितना सुखद और रूमानी था वो दौर...अचानक से प्रेरणा वापस लौट आती है...सच में...आज में...वो बस अभिमन्यु की तरफ देखती है...आप शादी क्यों नहीं कर लेते...कब तक यूँ ही घुटते रहोगे...कब तक माँ यूँ ही इंतजार करती रहेंगी...कब तक ये सब यूँ ही चलता रहेगा...कब तक अतीत में जीते रहोगे...मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो...

अभिमन्यु हाथ की लकीरों को देखता है फिर हँसता सा है...ये सब किस्मत की बातें है...क्या तुम खुश रह सकीं...वो प्रेरणा की आँखों में देखता है...उसकी आँख भर आती है...इसीलिए शायद मेरी किस्मत में भी ये सब नहीं...बादल आज कुछ मेहरबान हो चले...ठीक उसी पल बारिश भी होने लगती है जब प्रेरणा की आँखों से आँसू बहने लगते हैं...प्रेरणा उठकर जाने लगती है...अभिमन्यु उसका हाथ पकड़ लेता है...मैं भी तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ...यूँ घुट घुट कर मरते हुए नहीं...और पास खींच लेता है...इतना पास कि दोनों के बीच बस मामूली सा फासला है...मुझसे शादी करोगी...प्रेरणा उसकी आँखों में देखती रह जाती है...काफी देर तक देखती रहती है...फिर अचानक से...नहीं मैं शादी नहीं करना चाहती...और खुद को छुडा लेती है...मुझे पता था कि आप मुझसे मिलते रहोगे और एक दिन ऐसा कुछ होगा...और मुझ पर एहसान करने की सोचोगे...मैं जा रही हूँ...प्रेरणा चली जाती है...अभिमन्यु वहीँ बारिश में खड़ा खड़ा भीगता रहता है...उसकी आँखों से भी पानी बरस रहा था...

दिन बीत जाते हैं...लगभग 1 महीना हो जाता है प्रेरणा उसे नहीं मिली...अभिमन्यु थोडा चिंता में आ जाता है...एक रोज़ वो मार्केट गया हुआ था तभी वो तांगे वाला मिलता है...अरे साहब आप यहाँ...अभिमन्यु उसे पहचान जाता है....क्यों क्या हुआ...अरे वो मेमसाहब तो हॉस्पिटल में भर्ती हैं...अभी अभी उन्हें छोड़ कर आ रहा हूँ...अभिमन्यु अपने हाथ से सिगरेट फेंकता है....कहाँ, किस हॉस्पिटल में ?...वो कहता है चलो मैं आपको छोड़ देता हूँ...

हॉस्पिटल में पहुँच अभिमन्यु प्रेरणा के कमरे में पहुँचता है...वो बिस्तर पर थी...उसे इस हालत में देखकर उसकी आँखें गीली हो गयी...उसके पास एक टीचर थी...वो खामोशी से वहीँ पास ही बैठ जाता है...वो टीचर से पूँछता है क्या हुआ...अरे मैडम की तबियत काफी दिनों से ख़राब थी...शायद पीलिया है और ऊपर से नीद नहीं आती तो नीद की गोली खाती हैं...सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया...बस जैसे तैसे यहाँ लेकर आ रहे हैं...अभिमन्यु इतना दुखी कभी नहीं था...वो सोचता है प्रेरणा ने कभी बताया भी नहीं...

2-3 घंटे बाद वो मैडम से बोलता है आप जाइए...मैं यहाँ सब संभाल लूँगा....मैडम बताती हैं कि उन्होंने इनके पिताजी के पास फ़ोन कर दिया है वो कल तक आ जायेंगे...अभिमन्यु लगातार यूँ ही प्रेरणा के पास बैठा रहता है...अगले 2-3 घंटे में प्रेरणा को होश आता है...अभिमन्यु को सामने देखकर वो उसे देखती रह जाती है...अरे आप...बस कुछ बोलो मत तुम मुझसे....तुमने इस काबिल भी नहीं समझा कि मैं तुम्हारी इस हालत में तुम्हरे साथ रह सकूं...प्रेरणा खामोशी से सब सुनती रहती है...अभिमन्यु की आँखों से आँसू बह रहे थे और वो अपने दिल की सारी बातें कहे जा रहा था...वो मैंने सोचा...प्रेरणा कुछ कहना चाहती है...हाँ बस अब कुछ कहने की जरूरत नहीं...कहते हुए अभिमन्यु उसे रोक देता है

अभिमन्यु सारी रात जाग जाग कर उसकी देखभाल करता है...अगले रोज़ शाम तक ठाकुर साहब आ जाते हैं...वो अभिमन्यु को देखकर चौकं जाते हैं...पर आज उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था...वो एक हारे हुए खिलाडी थे...उनके सारे पासे उल्टे जो पड़े थे...उन्होंने प्रेरणा को देखा उस से बात की...अब उस कमरे में तीन वो इंसान थे जो एक दूसरे की जिंदगी से जुड़े हुए थे....एक इंसान की वजह से तीनो की जिंदगी आज इस मुकाम पर थी...कई बार प्रेरणा के पिताजी अभिमन्यु को धन्यवाद कहना चाहते और अपने किये की माफ़ी माँगना चाहते...पर रुक जाते...7-8 दिन तक अभिमन्यु यूँ ही प्रेरणा की देखभाल करता रहा...इतनी देखभाल और उसकी फिक्र तो उसके पिताजी भी नहीं कर पाते...उसके पिताजी को बार बार यही ख्याल आता...हर रोज़ प्रेरणा अभिमन्यु को अपनी आँखों के सामने देखती...अपनी देखभाल करते देखती...आज उसके दिल में कोई ऐसी बात नहीं थी कि कुछ भी गलत सोच सके...आज उसे उस दिन पहाड़ी पर अपने किये हुए बर्ताव पर मलाल हो राह था...कि वो कितना गलत सोचती थी...अभिमन्यु से ज्यादा उसे कभी किसी ने चाह ही नहीं और ना कोई चाह सकता...आज उसकी समझ में आ गया था

अभिमन्यु दिन के समय कहीं बाहर कुछ दवाइयाँ लेने गया हुआ था...उसकी ऑफिस से चपरासी आता है जो उसकी माँ की चिट्ठी लाता है...माँ की लिखी हुई चिट्ठी थी...प्रेरणा से रहा नहीं गया...प्रेरणा चिट्ठी खोल कर पढने लगती है...चिट्ठी पढ़कर पता चलता है कि माँ उसे घर आने को बोल रही हैं और अभिमन्यु के किये हुए वादे को पूरा करने के लिए कह रही हैं....कि अबके बार अगर आपको कोई लड़की पसंद आती है तो वो उसे माँ के साथ देखने जाएगा...प्रेरणा चिट्ठी पढ़कर रख देती है और उसके मन में ख्याल आता है कि वो क्यों अभिमन्यु के रास्ते में आये...क्यों वो पहले से ही शादी कर चुकी लड़की से शादी करे...क्यों वो एक विधवा से शादी करे...इसी पशोपेश में वो तमाम बातें बुन लेती है...अभिमन्यु के लौटने पर वो बताती है कि माँ कि चिट्ठी आई है...पर यह नहीं बताती कि उसने पढ़ी है...1-2 रोज़ में प्रेरणा की हॉस्पिटल से छुट्टी हो जाती है...प्रेरणा के पिताजी भी जाने के लिए होते हैं

प्रेरणा के पिताजी प्रेरणा के हॉस्टल से जाने के बाद अभिमन्यु के पास जाते हैं और अभिमन्यु से अपने किये हुए की माफ़ी मांगते हैं...और बहुत शर्मिंदा होते हैं...वो जान चुके थे कि उन्होंने अपनी बेटी और अभिमन्यु का दिल दुखाया है...दोनों की जिंदगी तबाह की है...आज वो जान चुके थे कि ये जात, ये धर्म सब दुनिया की बनायीं हुई बातें हैं...रखा इनमें कुछ नहीं...कुछ भी नहीं...और अंत में वो अभिमन्यु से विदा लेते हुए जाने लगते हैं...अभिमन्यु उन्हें स्टेशन तक छोड़ कर आता है...

अगले 2 रोज़ बाद अभिमन्यु प्रेरणा की खबर लेने जाता है कि अब वो कैसी है...जब वो वहाँ पहुँचता है तो उसे पता चलता है कि वो तो वहाँ से चली गयी...अभिमन्यु सोच में पड़ जाता है कि वो बिना बताये कैसे चली गयी...साथ ही साथ बहुत गुस्सा भी आता है...कोई ठीक ठीक पता भी नहीं था किसी को कि कहाँ गयी है...कई रोज़ बीत जाते हैं हर रोज़ अभिमन्यु वहाँ जाये और कोई खबर ना मिले...जब करीब एक हफ्ता बीत जाता है और फिर भी कोई खबर नहीं मिलती तो वो निर्णय लेता है प्रेरणा के घर जाने का...

अभिमन्यु प्रेरणा के घर जाता है वहाँ उसका भाई और उसके पिताजी मिलते हैं...उसके पिताजी बड़े प्यार से उसे अन्दर बैठा हाल चाल पूंछते हैं...और जब अभिमन्यु उनसे प्रेरणा के बारे में पूँछता है तो वो खामोश हो जाते हैं...उसके जिद करने पर वो हकीकत बताते हैं कि किस तरह उसकी चिट्ठी प्रेरणा ने पढ़ी और अब वो तुम्हारे और तुम्हारी शादी के बीच नहीं आना चाहती...वो जानती है कि जब तक वो वहाँ रहती तुम कहीं शादी नहीं करोगे...इसी लिए वो अपनी किसी सहेली के यहाँ चली गयी है...किस सहेली के यहाँ ये उसने हमे नहीं बताया...बस कह गयी है कि मैं ठीक रहूंगी...अभिमन्यु की आँखों से आँसू बह आते हैं और वो अपने दिल का हाल बताता है कि वो हमेशा से प्रेरणा से ही प्यार करता था और तब भी उससे शादी करना चाहता था और आज भी उससे शादी करना चाहता है...प्रेरणा के पिताजी का दिल भर आता है...पागल लड़की पता नहीं क्या क्या सोचती रहती है...

वो अभिमन्यु को वादा करते हैं कि जैसे ही उसकी खबर आएगी वो उसे बता देंगे...अभिमन्यु उनसे कह कर जाता है कि वो वहीँ वापस जा रहा है वो वहीँ पर प्रेरणा का इंतजार करेगा...क्या पता प्रेरणा वहाँ आ जाये...और जो मैं ना मिला तो फिर...दिन बीत गए...हर रोज़ के साथ एक नयी उम्मीद बनती और फिर रात के साथ वो उम्मीद टूट जाती...दिन महीने में बदल गए...करीब 6 महीने बीत चुके थे....

कौन सोचता है कि ऊपर वाले ने क्या सोच रखा हो आपके लिए...अभिमन्यु तो कभी नहीं सोच सकता था...कभी भी नहीं...आज वो माँ से मिलकर लौटा था...वही स्टेशन था...वही बैंच...वो बैठ जाता है...बस वो था और वो खाली पड़ी बैंच...वो सिगरेट निकालता है, जलाता है और धुंआ उड़ाता है...चारों और फैला हुआ धुंआ...वो धुंआ अजीबो गरीब शक्लें बना रहा था...कभी रोने की तो कभी हंसने की...अभिमन्यु गर्दन झुका कर बैठ जाता है...एक अंतहीन सोच में डूबा हुआ...बिल्कुल खामोश...वक़्त कितना बीत गया उसे पता ही नहीं...तभी ट्रेन की आवाज़ होती है...कोई उतरा है उसमें से...पर अभिमन्यु वैसे ही गर्दन झुकाए बैठा हुआ है...हाथ में सिगरेट जल रही है...उसके पास कोई आता है...उस हाड कपाने वाली ठण्ड में जिसका अभिमन्यु को एहसास नहीं हो रहा था...एक शौल कोई उसके कन्धों पर डालता है....वो गर्दन उठाता है...वो कोई और नहीं प्रेरणा थी...वही चेहरा...वही खामोशी...पर आज उस पर सवाल नहीं थे...आज वो चेहरा बिल्कुल वैसा ही था जैसा वो पहले कभी देखा करता था...जब प्रेरणा सिर्फ उसकी हुआ करती थी...तुम...बस इतना निकला अभिमन्यु के मुंह से...मुझे माफ़ कर दो 'अभी' मैंने आपको हमेशा गलत समझा...और वो उस दिन जब...अभिमन्यु उठता है और प्रेरणा के गाल पर एक चांटा खींच कर मारता है...तुमने सोच भी कैसे लिया...प्रेरणा अभिमन्यु के सीने से लिपट जाती है...मुझे माफ़ कर दो...अब जिंदगी भर फिर कभी ऐसा नहीं सोचूंगी...अभिमन्यु कहता है पक्का...हाँ बिल्कुल पक्का...फिर दोनों एक दूजे से लिपट कर काफी देर तक रोते रहते हैं

अब वही बैंच है और दोनों बैठे हुए हैं...अभिमन्यु प्रेरणा के गले में हाथ डाल कर बैठा हुआ है...फिर वो सिगरेट निकालता है...जलाता है...धुंआ छोड़ता है...आज चाँद अपने शबाब पर है...आज चाँदनी रात है शायद...प्रेरणा बोलती है...अच्छा 'अभी' एक बात कहूँ...ह्म्म्म्म...आप सिगरेट पीते हुए बिल्कुल अच्छे नहीं लगते...सच्ची...हाँ सच्ची...पक्की-पक्की...हाँ बाबा पक्की-पक्की...और प्रेरणा, अभिमन्यु के हाथ से सिगरेट लेकर फेंक देती है...आज से सिगरेट बिल्कुल बंद...अरे...अरे...ये अच्छी दादागीरी है...अभिमन्यु बोलते हुए हँसता है...और प्रेरणा भी हँस देती है...अभिमन्यु प्रेरणा को एक बार फिर से गले लगा लेता है...

"कितने ही चाँद-सितारे देखे थे मैंने इन बीती लम्बी रातों में
हर रात काली और उदास ही नज़र आई मुझे

आज चाँद भी मेरा है और चाँदनी भी मेरी"

आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल (आलेख )- प्रमेन्द्र प्रताप सिंह


आज महात्‍मा गांधी की पुण्‍यतिथि है, सर्वप्रथम श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। कल दैनिक जागरण मे साबरमती के संत गीत के सम्‍बन्‍ध मे एक लेख था और आज के संस्‍करण मे उसी से सम्‍बन्‍ध चर्चा पढ़ने को मिली। महात्मा गांधी के सम्मान में गाए जाने वाले गीत..दे दी आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.. आज के समय मे कितना उचित है यह जानना जरूरी है ?

महात्‍मा गांधी जी ने देश की आजादी मे अहम योगदान दिया इसे अस्‍वीकार करना असम्‍भव है पर यह गीत वास्‍तव मे देश की आजादी मे अपना बलिदान देने वाले लोगो को कमतर बताता है। आज स्‍वयंआकालन करने की जरूरत है कि क्‍या आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल के ही मिली है ? इमानदारी से कहे तो गीत लिखने वाले भी इसे स्‍वीकार नही करेगे।

भारत की स्‍वतंत्रता की लड़ाई 1857 और उससे भी पहले छोटी मोटे तौर पर लड़ी जा रही थी, शहीद मंगल पांडेय, झांसी की रानी लक्ष्‍मी बाई और अगिनत ऐसे लोगो ने अपने जान की परवाह न करते हुये भारत माता को आजाद करने के लिये हर सम्‍भव प्रहार किया। गांधी जी के भारत आने के बाद की परिस्थिति दूसरी थी, गांधी जी 1915 मे भारत आये और 1916 से विभिन्‍न आंदोलनो मे भाग लिया। आज हम अपने बच्‍चो तो जो पढ़ा रहे हे कि हमे आजादी बिना खडग और ढाल के मिली है इससे तो यही सिद्ध करना चाहते है कि गांधी से पहले स्‍वतंत्रता के नाम पर सिर्फ मजाक हो रहा था? और गांधी जी के आने के बाद यथावत स्‍वातंत्रता की लड़ाई बिना खड्ग और ढ़ाल के लड़ी गई ?

जो सम्‍मान गांधी का हो रहा है उसी प्रकार का सम्‍मान हर स्‍वातंत्रता सेनानी के साथ होना चाहिये। अगर इतिहासकारो की माने तो गांधी युग न होता तो 20 साल पहले भारत आजाद हो चुका होता और भारत विभाजन की नौबत ही नही आती। गांधी जी का यह गुणगान सिर्फ गांधी वादियो को ही सुहा सकता है, उन्हे ही इसे गाना चाहिये। अगर देश की आत्‍मा के साथ यह गान बहुत बड़ा मजाक है। यह गाना तो सीधे सीधे यही कह रहा है कि गांधी बाबा एक तरफ और सारे शहीद क्रान्तिकारी एक तरफ और तब पर भी गांधी भारी ?क्‍या यही सही है ?