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शनिवार, 12 सितंबर 2009

हिन्दी पखवाड़े में आज का व्यक्तित्व ----"धर्मवीर भारती"

हिन्दी पखवाड़े को ध्यान में रखते हुए हिन्दी साहित्य मंच नें 14 सितंबर तक साहित्य से जुड़े हुए लोगों के महान व्यक्तियों के बारे में एक श्रृंखला की शुरूआत की है । जिसमें भारत और विदेश में महान लोगों के जीवन पर एक आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है ।। आज की कड़ी में हम "धर्मवीर भारती जी" के बारे में जानकारी दे रहें ।आप सभी ने जिस तरह से हमारी प्रशंसा की उससे हमारा उत्साह वर्धन हुआ है उम्मीद है कि आपको हमारा प्रयास पसंद आयेगा



धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। इनका जन्म २५ दिसंबर, १९२६- को प्रयाग में हुआ और शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से प्राप्त की। प्रथम श्रेणी में एम ए करने के बाद डॉ धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध-प्रबंध लिखकर उन्होंने पीएचडी प्राप्त की। कार्यक्षेत्र : अध्यापन। १९४८ में 'संगम' सम्पादक श्री इलाचंद्र जोशी में सहकारी संपादक नियुक्त हुए। दो वर्ष वहाँ काम करने के बाद हिंदुस्तानी अकादमी में अध्यापक नियुक्त हुए। सन् १९६० तक कार्य किया। प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान 'हिंदी साहित्य कोश' के सम्पादन में सहयोग दिया। निकष' पत्रिका निकाली तथा 'आलोचना' का सम्पादन भी किया। उसके बाद 'धर्मयुग' में प्रधान सम्पादक पद पर बम्बई आ गये। १९८७ में डॉ भारती ने अवकाश ग्रहण किया। १९९९ में युवा कहानीकार उदय प्रकाश के निर्देशन में साहित्य अकादमी दिल्ली के लिए डॉ० भारती पर एक वृत्त चित्र का निर्माण भी हुआ है।

वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है. सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी. अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है। । इब्राहीम अलकाजी ,राम गोपाल बजाज , अरविन्द गौड़ ,रतन थियम,एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशको ने इसका मंचन किया है । ४ सितंबर, १९९७ में उनका निधन हो गया

अलंकरण तथा पुरस्कार--१९७२ में पद्मश्री से अलंकृत डा धर्मवीर भारती को अपने जीवन काल में अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए जिसमें से प्रमुख हैं १९८४ हल्दी घाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन १९८८ सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी दिल्ली १९८९ भारत भारती पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान १९९० महाराष्ट्र गौरव, महाराष्ट्र सरकार १९९४ व्यास सम्मान के के बिड़ला फाउंडेशन प्रमुख कृतियां कहानी संग्रह : मुर्दों का गाव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान, सास की कलम से, समस्त कहानियाँ एक साथ काव्य रचनाएं : ठंडा लोहा, सात गीत, वर्ष कनुप्रिया, सपना अभी भी, आद्यन्त उपन्यास: गुनाहों का देवता, सूरज का सातवां घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन निबंध : ठेले पर हिमालय, पश्यंती कहानियाँ : अनकही, नदी प्यासी थी, नील झील, मानव मूल्य और साहित्य, ठण्डा लोहा, पद्य नाटक : अंधा युग आलोचना : प्रगतिवाद:एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य भाषा परिमार्जित खड़ीबोली; मुहावरों, लोकोक्तियों, देशज तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग।शैली भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक आलोचनात्मक हास्य व्यंग्यात्मक।

हराम जादा - लघुकथा ( राज भटिया की )

आंखो देखी, कानो सुनी... लेकिन आज का सच
अरे कहा गये सब.... सुबह से एक रोटी नही मिली... एक बुजुर्ग
बहूं .. मिल जायेगी अभी समय नही...
अरे बहूं मेने कल शाम से कुछ नही खाया..
तो...
बुढा अपने बेटे की तरफ़ देखता है, ओर बेटा बेशर्मो की तरह से नजरे चुरा कर कहता है... बाऊ जी आप भी बच्चो की
तरह से चिल्लते है... थोडा सब्र क्यो नही करते??
बुढा... अपने बेटे से कमीने तुझे इस लिये पाल पोस कर बडा किया था....
तभी बहु की आवाज आती है ..... हराम जादे तू कब मरेगा... हमारी जान कब छोडेगा यह कुत्ता... सारा दिन भोंकने के
सिवा इसे कोई दुसरा काम नही.......
( जब कि यह परिवार उसी हराम जादे की पेंशन ही खाते है)
उसी पल इस बुजुर्ग ने खाना छोड दिया ओर करीब एक माह बाद भूख से तडप तडप कर मर गया...
ओर पेंशन आधी हो गई