सब जानते हैं-
सांप्रदायिकता!
धर्म,भाषा,रंग,देश...
न जाने कितनी ही बिंदुओं पर
तुम कटार उठाओगे
और दौड़ने लगोगे एकाएक
हांफते हुए-
कस्बा-कस्बा
शहर-शहर
गांव-गांव।
और यह भी
सब जानते हैं-
कि अपने चरित्रानुसार
रोती-बिलखती बुत बनी आत्माओं
खंडहरों के बीच छुप जाओगे
शायद तुम्हारे भीतर का आदमी
डरा होगा थोड़ी देर के लिए।
तब-
उन्हीं खंडहरों
काठ बनी आत्माओं के बीच से
निकल आएगा धीरे-धीरे
एक कस्बा
एक शहर
एक गांव....एक गांव...।
सांप्रदायिकता!
धर्म,भाषा,रंग,देश...
न जाने कितनी ही बिंदुओं पर
तुम कटार उठाओगे
और दौड़ने लगोगे एकाएक
हांफते हुए-
कस्बा-कस्बा
शहर-शहर
गांव-गांव।
और यह भी
सब जानते हैं-
कि अपने चरित्रानुसार
रोती-बिलखती बुत बनी आत्माओं
खंडहरों के बीच छुप जाओगे
शायद तुम्हारे भीतर का आदमी
डरा होगा थोड़ी देर के लिए।
तब-
उन्हीं खंडहरों
काठ बनी आत्माओं के बीच से
निकल आएगा धीरे-धीरे
एक कस्बा
एक शहर
एक गांव....एक गांव...।