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शनिवार, 23 जुलाई 2011

सांप्रदायिकता (कविता)----जयप्रकाश स‌िंह बंधु

स‌ब जानते हैं-
स‌ांप्रदायिकता!
धर्म,भाषा,रंग,देश...
न जाने कितनी ही बिंदुओं पर
तुम कटार उठाओगे
और दौड़ने लगोगे एकाएक
हांफते हुए-
कस्बा-कस्बा
शहर-शहर
गांव-गांव।

और यह भी
स‌ब जानते हैं-
कि अपने चरित्रानुसार
रोती-बिलखती बुत बनी आत्माओं
खंडहरों के बीच छुप जाओगे
शायद तुम्हारे भीतर का आदमी
डरा होगा थोड़ी देर के लिए।

तब-
उन्हीं खंडहरों
काठ बनी आत्माओं के बीच स‌े
निकल आएगा धीरे-धीरे
एक कस्बा
एक शहर
एक गांव....एक गांव...।