अभी भी मन को मोह लेते हैं
फूल, पत्ते और मौसम
अभी भी कोशिश करता हूँ उनसे संवाद करने की
अभी भी मुग्ध कर देती है हैं खिली हुयी मानव छवियाँ
और मैं गुनगुनी झील में उतराने लगता हूँ
अभी भी आते हैं बाल्यवस्था के सपने
और मैं नदी में नाव सा बहने लगता हूँ
अभी भी भौंरे व चिडियों का संगीत
बज उठता है धीरे से कानों में
और मैं सितार सा झनझना जाता हूँ
अभी भी उपन्यासों के के पात्रों,
फिल्मी चरित्रों का दर्द
उनका घायल एकाकीपन
मुझे देर तक उदास कर जाता है
अभी भी इसका उसका जाने किस किसका
क्रूर और फूहड़ सुख
मेरे अंतर्मन को क्रोध से उत्तेजित कर देता है
अभी भी अक्सर मुझे आईना फटकार लगा देता है
अभी भी मौका मिलते ही ठहाके लगाना नहीं भूलता
यारों क्या अजीब बात है
मालूम होता है कि इस उम्र में भी
मैं जिन्दा हूँ औरों से थोडा ज्यादा !!!!!