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रविवार, 11 सितंबर 2011

बदल गया है देश {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

भला विचारा कभी,
हम क्या थे और क्या हो गये
स्वार्थ की प्रतिस्पर्धा ऐसी जगी
परहित भूल, अलमस्त हो खो गये !
न फिक्र की समाज की,
किसी के दुःख से न रहा कोई वास्ता
फंसकर छल कपट के जुन्गल में
बहाया अपनों का लहू, चुना बर्बादी का रास्ता
तिल भर सौहार्द न बचा ह्रदय  में
भला किसने रचा ये परिवेश
तुम खुद बदल गये हो
और कहते हो बदल गया है देश !
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मनुष्य सदैव से अपनी गलतियों को छुपाने के लिए दूसरों पर दोषारोपण करता आया है,
परन्तु वर्तमान की आवश्यकता गलतियों  का परित्याग एवं विकाशन है, किन्तु ये विडम्बना ही है की वो इस वास्तविकता का साक्षात्कार करने से स्वयं को बचा रहा है !