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गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

कृष्ण कुमार यादव कृत काव्य संग्रह ‘अभिलाषा’ पर समीक्षा गोष्ठी

साहित्य अकादमी म0प्र0 संस्कृति परिषद भोपाल के छिन्दवाड़ा पाठक मंच केन्द्र द्वारा गुडविल एकाउंटस अकादमी और म0प्र0 आंचलिक साहित्यकार परिषद के संयुक्त तत्वाधान में युवा कवि एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव के काव्य संग्रह ‘अभिलाषा’ पर 16 अप्रैल, 2009 को छिन्दवाड़ा के मानसरोवर काम्पलेक्स में समीक्षा गोष्ठी आयोजित की गयी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ0 कौशल किशोर श्रीवास्तव ने कहा कि अभिलाषा काव्य संग्रह का सम्पादन अत्यधिक प्रशंसनीय है तथा कविताओं के वर्गीकरण ने उसे सुन्दर बना दिया है। कवि का अभिजात्य शब्द चयन उसे सबसे ऊपर और सबसे अलग रख देता है। सम्पादन में नारी के तीनों रुपों के नीचे ईश्वर को रखा गया है जो दृष्टव्य है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार श्री लक्ष्मी प्रसाद दुबे ने कहा कि संग्रह की कवितायें अपनी मानवीयता, कोमलता, लय तथा प्रेम भावना के साथ कहीं कल्पना तो कहीं वास्तविकता के साथ मिलकर एक सरस प्रवाह के रूप में पाठकों को निमग्न करने में सक्षम हैंै। उन्होंने अपने समीक्षा आलेख में पढ़ा कि इन कविताओं में जहाँ एक तरुण हृदय की भावुकतापूर्ण श्रृंगार रस में डूबी प्रणय भावना का सुन्दर चित्रण हुआ है, वहीं प्रकृति के विभिन्न रूपों के प्रति प्रेम एवं लगाव के साथ ही विचार प्रधान और बौद्धिकता से अधिक मार्मिक और प्रभावी भाव रचनाओं में चित्रित हुये हैं। विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित वरिष्ठ कहानीकार श्री गोवर्धन यादव ने अपने समीक्षा आलेख में पढ़ा कि संग्रह में कवि ने अपने बहुरूपात्मक सृजन में प्रगति के अपार क्षेत्रों में विस्तारित आलम्बनों को विषयवस्तु के रूप में प्राप्त करके हृदय और मस्तिष्क के रसात्मकता से कविता के अनेक रूप बिम्बों में सँजोने का प्रयास किया है। इन कविताओं में जहाँ व्यक्तिगत सम्बन्धों, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्याओं और विषमताओं, जीवन मूल्यों के साथ हो रहे पीढ़ियों के अतीत और वर्तमान के टकरावों तथा प्रगति के पर्यावरणीय विक्षोभों का खुलकर भावनात्मक अर्थ शब्दों में अनुगुंजित हुआ है, वहीं परा-अपरा, जीवन दर्शन, विश्व बोध, विज्ञान बोध से उपजी अनुभूतियों, बाल विमर्श, स्त्री विमर्श तथा जड़ व्यवस्था और प्रशासनिक रवैये को भी कवि कृष्ण कुमार यादव ने अनेक रुपों में चित्रित किया है।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेन्द्र वर्मा ने कहा कि संग्रह की प्रत्येक कविता संदेशप्रद और कवि की आध्यात्मिक चेतना का प्रतिबिम्ब दिखाने वाली है। गेयता के अभाव के बावजूद कविता प्रभाव डालती है। कवि ने ‘माँ’ कविता से संग्रह का प्रारम्भ कर मानो इष्टदेवी वन्दना की है और उसका ममत्व पूरे संग्रह पर छाया है। यहाँ तक कि ‘प्रेयसी’ से सम्बन्धित कविताओं में भी गरिमा है। ‘तुम्हारी खामोशी’ कविता प्रेम की शिखर अनुभूति का शब्द दर्पण है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री रत्नाकर ‘रतन’ ने कहा कि कवि ने मानवीय गतिविधियों, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिवेश और सांस्कृतिक मूल्यों के विविध आयामों को कविता में पिरोया है। माँ और ईश्वर खण्ड की कवितायें ज्यादा प्रभावित करती हैं। कवितायें बहुत ही सहज और सरल हैं। वरिष्ठ साहित्यकार श्री परसराम तिवारी ने कहा कि संग्रह में कवि की सरलतम शब्दों में गहनतम अभिव्यक्ति है तथा कवि ने वास्तविकता के धरातल पर जीवन के अनुभव को कविता में ढाला है। कवि साम्यवादी विचाराधारा से भी प्रभावित लगता है। म0प्र0 आंचलिक साहित्यकार परिषद की जिला शाखा के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवशंकर शुक्ल ‘लाल’ ने अपने समीक्षा आलेख में पढ़ा कि इस कृति की प्रत्येक कविता में शब्दों एवं विचारों में क्रमबद्धता और लयात्मकता है जो पाठक को बांधे रखती है एवं कवि की श्रेष्ठता एवं सृजनात्मकता को प्रमाणित करती है। यह सार्थक कृति भाषा शैली और शिल्प की दृष्टि से भी विशिष्टता और पहचान के सुयोग्य है। संग्रह में उपमायें, प्रतीक बिम्ब तो हंै ही, अमिधा, लक्षणा और व्यंजना का रंग संकलन का अतरंग है जो विषय वस्तु की प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों उजागर करता है। प्रबुद्ध पाठक डाॅ0 संतोष कुमार नाग के समीक्षा आलेख में पढ़ा गया कि इस कृति में जीवन के विभिन्न पहलुओं को छू लेना कवि की समग्रता को दर्शाते हैं। मनोभावों को शब्दों के रूप में आकार-प्रकार देकर अहसास को संसेदना के साथ व्यवस्थित कर कवि ने कृति में जान डाल दी है जो उसके बहुआयामी विचारों की पैठ दर्शाती है। युवा साहित्यकार श्री ओमप्रकाश ‘नयन’ ने कहा कि 12 खण्डों में विभाजित इस संग्रह में 88 कवितायें हैं जो कवि की अभिलाषाओं की उड़ान के रूप में सामने आती हैं। कवि जहाँ प्रकृति के प्रति गहरा लगाव और नैसर्गिक परिवेश को चित्रित करता है, वहीं प्रेम की अनुभूति, पारिवारिक मर्मस्पर्शिता, अन्तर्वेदना और युवा पीढ़ी की कुंठा से लबरेज है। वैचारिक प्रतिबद्धता और कलात्मक से परे कवि जीवन की समग्रता में माँ, प्रेयसी, ईश्वर, बचपन, यौवन, इंसानियत, मानवीय मूल्यों, करुणा आदि को शामिल करता है।

कार्यक्रम में युवा कवि श्री रामलाल सराठे, ‘रश्मि’ ने कहा कि कवि लम्बी कविताओं और अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचा है तथा रचनाओं के पात्र काल्पनिक न होकर स्वाभाविक हैं। युवा कवि श्री के0के0मिश्रा ‘कायर’ ने कहा कि ‘माँ’ कविता में माँ-बेटा-बहू का चित्रण इस प्रकार बना है कि रात भर शमा सिर्फ इसलिए जलती रही कि दिन के उजाले में चलने वाला मुसाफिर रात के अंधेरे में कहीं भटक न जाये, इसलिए निशा से लेकर उषा को सौंपने का उपक्रम करती है माँ। अपनी सास से पति को प्राप्त का उसकी प्रतिकृति को अपनी बहू को सौंपते वक्त हथेली पर गिरा गर्म आँसू सारी जिन्दगी का निचोड़ होता है। युवा कवि श्री राजेन्द्र चैबे ने कहा कि कवि ने जैसा सोचा, वैसा ही हर स्तर के लोगों पर लिखा है। विचारों को सहजता और सरलता से व्यक्त कर कवि ने कविताओं को ग्राह्य बना दिया है। युवा कवि श्री राजेन्द्र यादव ने कहा कि कविताओं में कवि की अभिव्यक्ति, दीवानगी, कल्पना की उड़ान अच्छी है तथा जमीनी सच्चाई का अनुपम उदाहरण है। परी की तुलना माँ से करना कवि की बुद्धि का परिचायक है तथा ‘ताले’ कविता दोहरे मानवीय चरित्र को उजागर करती है। युवा कवि श्री दिनेश परिहार ने कहा कि संग्रह के ईश्वर खण्ड की कवितायें विशेषकर ‘भिखमंगों का ईश्वर’ अच्छी लगी। युवा कवि श्री सुदेश मेहरोलिया ने कहा कि कवि ने घटनाओं को सहजता और सरलता से प्रस्तुत किया है। इन कविताओं में नयापन नहीं होने पर भी कवितायें पठनीय हैं। युवा कवि श्री श्रीकान्तशरण डेहरिया ने कहा कि संग्रह के ‘प्रेयसी’ खण्ड की ‘प्रेम’ कविता अच्छी है, जिसमें कवि प्रेम के माध्यम समाज के सभी लोगों को एक दूसरे से बांधना चाहता है। इसी तरह ‘तितलियाँ’ कविता भी अच्छी और सुन्दर बन पड़ी है। कार्यक्रम में श्री विशाल शुक्ल ‘ओम्’ और अन्य साहित्यकार व श्रोतागण उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन पाठक मंच के संयोजक एवं युवा साहित्यकार श्री ओम प्रकाश ‘नयन’ ने किया।
गोवर्धन यादव (वरिष्ठ कथाकार/समीक्षक)
संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103, कावेरी नगर, छिंदवाड़ा (म0प्र0)-480001

कभी तुम आओ तो सही


जगाकर प्यार का एक
मीठा एहसास,
महका कर मेरी सांस का
एक-एक तार,
दिल की हर धड़कन तुम
झंकृत कर गईं,
सजाने को अपना प्यार भरा संसार,
......कभी तुम आओ तो सही।

बरखा ने सावन में छेड़ी है
रिमझिम फुहार,
सात सुरों का संगीत है
सजा रही बहार,
हर मंजर लिए है एक
अजब सी मदहोशी,
सजी है फिजा में एक
रुनझुन सी खामोशी,
प्रकृति भी है आज सजी है
इंद्रधनुषी रंग में,
देखने को मनभावन छटा
......कभी तुम आओ तो सही।

मौसम के साथ हर रंग
बदला है,
फिजां का स्वरूप
उजला है,
चाँद भी है खुश चाँदनी
बिखरा कर,
फूलों ने सजाई राह खुद को
महका कर,
सजाया है गगन ने झिलमिल
सितारों का आँचल,
करने को अद्भुत श्रृंगार
......कभी तुम आओ तो सही।