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रविवार, 17 मई 2009

जीवन की सच्चाई

धरातल पर आकर खड़ी हो गईं फिर
उड़ती आकांक्षाएँ लोगों की,
दरक गये सपने
जो सजे थे लोगों के,
बिखर गईं कड़ियाँ
जो बुनी थी लोगों की।
हर सांस को अगली सांस का पता नहीं,
इस पल में क्या गुजर जाये पता नहीं,
बस....समय की गति से न पिछड़ने के लिए,
आज की भागदौड़ में साथ चलने के लिए,
लगे हैं....किसी मशीन की तरह।
उगते सूरज की मानिन्द उठ कर,
सारे दिन का सफर
खत्म होता है जो
रात की काली चादर तले।
इसी को अपने दर्द की इंतिहा जाना,
इसके बाद किसी सीमा को न पहचाना,
भागदौड़ का दर्द,
पिछड़ने का भय,
कुछ पाने की लालसा,
कुछ खोने का ग़म,
समझा गया, माना गया इसी को
सबसे बड़ा ग़म,
आने वाले पल को कठिन हरदम।
क्या जिन्दगी की कठिनता इसी को समझा जाये?
दर्दो-ग़म को इससे कम न आँका जाये?
नहीं और....कभी नहीं।
बढ़ाकर दो कदम औरों की राह पर
लोगों के दर्द को जाना जाये।
क्या वो दर्द कम है उस बालक का
जो चिपका है अपनी
भूखी, सूखी, बेबस माँ के
भूखे, सूखे, बेबस आँचल तले।
मिटाने को आग पेट की
पी रहा है आँसू दूध के बदले।
नहीं पा सका सिवाय हौले से थपकी के
बेजान सी लोरी के साये में छिपी
माँ की सिसकी के।
नहीं मिल सका कुछ और उसे,
नहीं दे सकी वह लाचार माँ उसे
तब क्या यह दर्द माँ का
कमतर रहा किसी ग़म से?
दुःख वहाँ भी कम नहीं जहाँ
कोमल हाथों में है औजार की कठोरता,
भूख, गरीबी, लाचारी तले पिस रहा है
बचपन...लावण्य....।
दहेज की लालची निगाह में जलती कोई दुल्हन,
सिसकता रह जाता है जिसके पीछे
किसी बाबुल का आँगन,
सुनी पड़ी रह जाती है
किसी भाई की कलाई।
कुचल जाती है कहीं कोई नन्ही जान
इस जहाँ में जन्मने से पहले,
छिपा जाती है माँ अपने अंतर में
अपने हिस्से को खोने के दर्द की गहराई।
किसी को दर्दो-ग़म गरीबी-लाचारी का,
कहीं किसी को दुःख बेकारी का।
दर्द...दर्द...और दर्द,
शायद यही आज का तथ्य है,
इस जगत का कटु सत्य है।
संकीर्ण, संकुचित रूप में हमें दिखती है
अपने ही दुःखों की परछाईं
पर...यहाँ तो हर मन में,
हर दिल में बनी है
दुःखों, ग़मों की खाई।
जिसमें डूब रहा है,
तड़प सिसक रहा है
हर इंसान।
निकलने को बाहर इससे
हाथ-पैरों का अथक प्रयास,
लेकिन जन्म से मृत्युपर्यन्त
इसी दर्दो-ग़म की खाई में
सिसकता रहता है इंसान।

ये युवा .......जो कुछ करना चाहते हैं......!!!![आलेख ] - भूतनाथ


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
दोस्तों..!! चालीस के लपेटे में आया हुआ आदमी क्या वही सब सोचता है,जो आज मैं आज सोच रहा हूँ...!!
आज अहले सुबह जब सैर को निकला......तो भोर की प्राकृतिक छठा के साथ और भी कई पहलु देखने को मिले.... यूँ तो रोज ही यह सब देखने को होता है.....,मगर सब कुछ को रोज--रोज देखते हुए रोज नए विचार मन या दिमाग में आते है....हैं ना......!!

रोज
नए युवा होते बच्चों को देखता हूँ....रोज जिन्दगी के नए-नए रंग इनमें फूटते देखता हूँ.....!!....रोज इक नई आस मुझमें जग जाती है....!!

बूढे
लोग चाहे जितना अतीत की अच्छाईयों को याद करते हुए वर्तमान को कोसें.....अथवा आगत की भयावह कल्पना करें....और हमें सावधान करें.....मगर इतना तो जरूर है कि हर आने वाले युवा ने ही मानव के विकास का रास्ता प्रशस्त किया है....बेशक यह विकास महज भौतिक साधनों का विकास हो....या विवादित ही सही....मगर इस विकास के आम वो लोग भी हर पल चूसते हैं,जो हर पल इस विकास की आलोचना करते नहीं थकते....!!

हर
आने वाला नया युवा इक नई सोच.....नई ऊर्जा......नई उमंग.....नई गति.....नई खुशबू से भरा होता है....!!और अगर हम गौर से देखें तो जिन युवाओं को हम लगातार उपदेश देना चाहते हैं......उनसे हम ख़ुद भी बहुत-कुछ सीख सकते हैं.....सच तो यह है.....हम सब एक-दूसरे से बहुत-कुछ सीख सकते हैं.......!!

आदमी
-आदमी के बीच बहुत-कुछ देना लेना सम्भव है....बेशक यह बात अलग है कि हम क्या देते हैं.... या क्या लेते हैं.....दरअसल हर जगह रचनात्मकता की गुंजाईश होती है.....बेशक अपनी नादानियों से हम हर जगह को मलिन बना डालते हैं......!!

सवेरे
की सैर.......सामने से आते युवाओं का जमावडा.....उनकी बातें......जौंगिंग करते हुए.....भागते हुए ...दौड़ते हुए अपने-आप को फिट रखने की कवायद करते ऊर्जा से परिपूर्ण ये युवा.....साईकिलिंग करती लडकियां .....और उनकी बातें......!!.........कभी-कभी उनकी बातें...इन सबकी बातें....इनका ज्ञान आप सुनाने की चेष्टा करें (बेशक किसी की बात चुपके से सुनना ग़लत है)तब पता चले कि प्रति-पल नए होते जाते ज्ञान की दुनिया में आप कहाँ हो.....!!

........
और यही सब कुछ सुनना यह संतुष्टि देता है कि दुनिया बेहतर हाथों में है....और बेशक हमसे भी बेहतर और सटीक हाथों में.....यह पीढी सिर्फ़ कैरियर की तलाश करती बेरोजगार पीढी नहीं है,बल्कि दुनिया के लिए नए सपनों....नए अर्थों को तलाश करती पीढी है.....!!

और
सच यह भी है कि इनके बाद....उनके बाद.....और उनके भी और बाद नई पीढी प्रतीक्षारत है....यह प्रकृति है....और इसमें हर पल नया घटित होने को है.....हो रहा है....और इस आगामी पीढी को मेरा महज यही संदेश है.....बढे चलो-बढे चलो.....अतीत की बात पर मत कलपते रहो.....प्रत्येक नए पल का स्वागत करो....उसका स्वाद लो.....हाँ मगर जिन्दगी की सच्चाईयों से सदा रु--रू रहो.....और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों को कभी मत भूलो.....क्योंकि कल सिर्फ़ तुम्हारा नहीं......कल सबका है.....और इस पर सभी का उतना ही हक़ है....जितना कि तुम्हारा ख़ुद का....है ना दोस्तों.....मेरे युवा दोस्तों .......!!

विजय कुमार सप्पत्ति जी पांच रचनाएं [आमंत्रित कवि ]


कवि परिचय -
विजय कुमार सप्पत्ति जी हैदराबाद में रहते हैं । वर्तमान समय में एक कंपनी में Sr.GM- Marketing के पद पर कार्यरत हैं । साहित्य से बहेद लगाव है आपका । अबतक करीब २५० कवितायें, नज्में , गज़लें लिखी है आपने । पत्राचार सपंर्क हेतु -
V I J A Y K U M A R S A P P A T T I
FLAT NO.402, FIFTH FLOOR,
PRAMILA RESIDENCY; HOUSE NO. 36-110/402,
DEFENCE COLONY, SAINIKPURI POST,
SECUNDERABAD- 500 094 [A.P.]
Mobile no : +91 9849746500
email ID : vksappatti@rediffmail.com


सिलवटों की सिहरन



अक्सर तेरा साया


एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है


और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है …..


मेरे हाथ ,


मेरे दिल की तरह कांपते है , जब मैं


उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..


तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है


जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,


मैं सिहर सिहर जाती हूँ ,कोई अजनबी बनकर तुम आते हो


और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …


तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है


मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ


कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में ,


पर तेरी मुस्कराहट ,


जाने कैसे बहती चली आती है ,


जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..


कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,


कोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,


कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......


या तो तू यहाँ आजा ,


या मुझे वहां बुला ले......


मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोडे है ........





मौनता



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


जिसे सब समझ सके ,


ऐसी परिभाषा देना ;


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना.



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,

ताकि ,

मैं अपने शब्दों को एकत्रित कर सकूँ


अपने मौन आक्रोश को निशांत दे सकूँ,


मेरी कविता स्वीकार कर मुझमे प्राण फूँक देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि मैं अपनी अभिव्यक्ति को जता सकूँ


इस जग को अपनी उपस्तिथि के बारे में बता सकूँ



मेरी इस अन्तिम उद्ध्ङ्तां को क्षमा कर देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि ,मैं अपना प्रणय निवेदन कर सकूँ


अपनी प्रिये को समर्पित , अपना अंतर्मन कर सकूँ


मेरे नीरस जीवन में आशा का संचार कर देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि ,मैं मुझमे जीवन की अनुभूति कर सकूँ


स्वंय को अन्तिम दिशा में चलने पर बाध्य कर सकूँ


मेरे गूंगे स्वरों को एक मौन राग दे देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,





मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि मुझमे मौजूद हाहाकार को शान्ति दे सकूँ


मेरी नपुसंकता को पौरुषता का वर दे सकूँ


मेरी कायरता को स्वीकृति प्रदान कर देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि मैं अपने निकट के एकांत को दूर कर सकूँ


अपने खामोश अस्तित्व में कोलाहल भर सकूँ


बस, जीवन से मेरा परिचय करवा देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि , मैं स्वंय से चलते संघर्ष को विजय दे सकूँ


अपने करीब मौजूद अन्धकार को एकाधिकार दे सकूँ


मृत्यु से मेरा अन्तिम आलिंगन करवा देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


जिसे सब समझ सके , ऐसी परिभाषा देना ;


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना….




परायों के घर


कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई ;


नींद की आंखो से देखा तो ,


तुम थी ,


मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,


उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था , मैंने तुम्हारे लिए ,


एक उम्र भर के लिए ...


आज कही खो गई थी , वक्त के धूल भरे रास्तों में ......


शायद उन्ही रास्तों में ..


जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो....


क्या किसी ने तुम्हे बताया नही कि,


परायों के घर भीगी आंखों से नही जाते.....




आंसू



उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा ,


तो तुमने कहा..... नही..


और चंद आंसू जो तुम्हारी आँखों से गिरे..


उन्होंने भी कुछ नही कहा... तो नही ... तो हाँ ..


अगर आंसुओं कि जुबान होती तो ..


सच झूठ का पता चल जाता ..


जिंदगी बड़ी है .. या प्यार ..


इसका फैसला हो जाता...




दर्द



जो दर्द तुमने मुझे दिए ,


वो अब तक संभाले हुए है !!


कुछ तेरी खुशियाँ बन गई है


कुछ मेरे गम बन गए है


कुछ तेरी जिंदगी बन गई है


कुछ मेरी मौत बन गई है


जो दर्द तुमने मुझे दिए ,


वो अब तक संभाले हुए है !!