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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

सफर के साथ मैं...............neeshoo tiwari

सफर के साथ मैं
या फिर मेरे साथ सफर
कुछ ऐसा रिश्ता बन गया था
कब, कहाँ, और कैसे पहुँच जाना है
बताना मुश्किल था
ऐसे ही रास्तों पर कई जाने पहचाने चहरे मिलते
और
फिर वो यादें धुंधली चादर में कहीं खो जाती
मैं कभी जब सोचता हूँ इन लम्हों को तो
यादें खुद ब खुद आखों में उतर आती हैं
वो बस का छोटा सा सफर
अनजाने हम दोनों
चुपचाप अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे थे
वो मेरे सामने वाली सीट पर शांत बैठी थी
उसके चेहरा न जाने क्यूँ जाना पहचाना सा लगा
ऐसे में
हवा के एक झोंके ने
कुछ बाल उसके चेहरे पर बिखेरे थे
वो बार-बार
अपने हाथों से बालों को प्यार से हटाती थी
लेकिन कुछ पल बीतने के बाद
वो लटें उसके गालों को फिर से छेड़ जाया करती थी
और
उसके चेहरे पर हल्की सी परेशानी छोड़ जाया करती थी
वो कुछ शर्माती, लजाती हुई असहज महसूस करती थी
फिर
चुपके चुपके कनखियों से मेरी ओर देखती थी
मैं तो एक टक उसको निहारता ही रहा था
कुछ कहने और सुनने का समय,
हम दोनों के पास न था
बिन कहे और बिन सुने
जैसे सब बातें हो गयी थी
क्यूंकि
हमें पता था की ये मुलाकात
बस कुछ पल की है
और
फिर इस दुनिया की भीड़ में गुमनाम होकर
कहीं खो जाना है
लेकिन ऐसे ही अनजानी शक्लें
अजनबी मुलाकातें होती रहेगी
कभी तन्हाई में साथ दे जाया करेगी

अंतिम विदाई-----(कविता) -- मीना मौर्या

धरा पर अवतिरत हुआ
लिपटा मोह माया में भाई
आज खुशी मना लो
कल होगी अंतिम विदाई ।

खुशियों का बसेरा छोटा
जीवन पहाड़ व रवाई
सुख-समृद्धि धन दौलत
खोयेगा बचेगा एक पाई ।

मानव मन परिवर्तन शील
स्थिर टिक नहीं पाई
वर्तमान तेरा अच्छा है
मत सोच भविष्य होगा भाई ।

अकेला चिराग देगा रोशनी
संसार अंधेरा कुआ राही
चिकने डगर पर गड्ढे हैं
शूल अनगिनत न देत दिखाई ।

टुक-टुक मत देख तस्वीर
सामने बुढापा जीवन बनी दवाई
शुरुआत तो अच्छी थी
अन्त बड़ा ही दुःखदाई।।

इन्द्र धनुष रंग जीवन
सब रंग न देत दिखाई
सजीला तन बना लचीला
सास लेना दुःखदाई ।

वास्तविकता विपरित इसके है
मानव मन आये चतुराई
स्वयं संसार में नाम कर
इतिहास बना ले अंतिम विदाई । ।