अखबार
मैं रोजाना पढ़ता हूँ अखबार
इस आशा के साथ
कि-
धुंधलके को चीरती सूर्य आभा
लेकर आई होगी कोई नया समाचार....।
लेकिन पाता हूँ
रोजाना प्रत्येक कॉलम को
बलात्कार, हत्या,
और दहेज कि आग से झुलसता
या फिर धर्म की आड में
खूनी होली से सुर्ख सम्पूर्ण पृष्ठ
साथ में होता है
राजनेताओं का संवेदना संदेश
आतंकवाद के प्रति शाब्दिक आक्रोश
जो इस बात का अहसास दिलाता है
सरकार जिन्दा तो है ही
संवेदनशील भी है।
तभी तो ढ़ू्ढते हैं वे हर सुबह
निंदा और शोक संदेशों में
अपना नाम ।
फिर भी न जाने क्यों
अखबार में बदलती तारीख
और नित नये विज्ञापन
मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं
जिससे मैं देश की प्रगति को
सरकारी आंकडों से जोडता हूँ
और इन आंकडों को
‘मेरा भारत महान’ वाली गली में
ले जाकर छोडता हूँ ॥
डॉ.योगेन्द्र मणि
मैं रोजाना पढ़ता हूँ अखबार
इस आशा के साथ
कि-
धुंधलके को चीरती सूर्य आभा
लेकर आई होगी कोई नया समाचार....।
लेकिन पाता हूँ
रोजाना प्रत्येक कॉलम को
बलात्कार, हत्या,
और दहेज कि आग से झुलसता
या फिर धर्म की आड में
खूनी होली से सुर्ख सम्पूर्ण पृष्ठ
साथ में होता है
राजनेताओं का संवेदना संदेश
आतंकवाद के प्रति शाब्दिक आक्रोश
जो इस बात का अहसास दिलाता है
सरकार जिन्दा तो है ही
संवेदनशील भी है।
तभी तो ढ़ू्ढते हैं वे हर सुबह
निंदा और शोक संदेशों में
अपना नाम ।
फिर भी न जाने क्यों
अखबार में बदलती तारीख
और नित नये विज्ञापन
मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं
जिससे मैं देश की प्रगति को
सरकारी आंकडों से जोडता हूँ
और इन आंकडों को
‘मेरा भारत महान’ वाली गली में
ले जाकर छोडता हूँ ॥
डॉ.योगेन्द्र मणि