हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 24 मई 2009

अखबार

अखबार

मैं रोजाना पढ़ता हूँ अखबार
इस आशा के साथ
कि-
धुंधलके को चीरती सूर्य आभा
लेकर आई होगी कोई नया समाचार....।
लेकिन पाता हूँ
रोजाना प्रत्येक कॉलम को
बलात्कार, हत्या,
और दहेज कि आग से झुलसता
या फिर धर्म की आड में
खूनी होली से सुर्ख सम्पूर्ण पृष्ठ
साथ में होता है
राजनेताओं का संवेदना संदेश
आतंकवाद के प्रति शाब्दिक आक्रोश
जो इस बात का अहसास दिलाता है
सरकार जिन्दा तो है ही
संवेदनशील भी है।
तभी तो ढ़ू्ढते हैं वे हर सुबह
निंदा और शोक संदेशों में
अपना नाम ।
फिर भी न जाने क्यों
अखबार में बदलती तारीख
और नित नये विज्ञापन
मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं
जिससे मैं देश की प्रगति को
सरकारी आंकडों से जोडता हूँ
और इन आंकडों को
‘मेरा भारत महान’ वाली गली में
ले जाकर छोडता हूँ ॥


डॉ.योगेन्द्र मणि

[कविता ] - भूतनाथ "रास्ता होता है....बस नज़र नहीं आता.........."

कभी-कभी ऐसा भी होता है

हमारे सामने रास्ता ही नहीं होता.....!!

और किसी उधेड़ बून में पड़ जाते हम....

खीजते हैं,परेशान होते हैं...

चारों तरफ़ अपनी अक्ल दौडाते हैं

मगर रास्ता है कि नहीं ही मिलता....

अपने अनुभव के घोडे को हम....

चारों दिशाओं में दौडाते हैं......

कितनी ही तेज़ रफ़्तार से ये घोडे

हम तक लौट-लौट आते हैं वापस

बिना कोई मंजिल पाये हुए.....!!

रास्ता है कि नहीं मिलता......!!

हमारी सोच ही कहीं गूम हो जाती है......

रास्तों के बेनाम चौराहों में.....

ऐसे चौराहों पर अक्सर रास्ते भी

अनगिनत हो जाया करते हैं..........

और जिंदगी एक अंतहीन इम्तेहान.....!!!

अगर इसे एक कविता ना समझो

तो एक बात बताऊँ दोस्त.....??

रास्ता तो हर जगह ही होता है.....

अपनी सही जगह पर ही होता है.....

बस.....

हमें नज़र ही नहीं आता......!!!!