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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

मेरी रातें-------[कविता]-----चंद्रपाल सिंह

मेरी रातें , मेरा शकुन है,
मेरी सुविधा है, मेरी रातें ,
मेरी रचनात्मकता और सृजनात्मकता की रातें,
आलस्य का असीम अवकाश लेकर आती रातें,
मैं अँधेरी-उजली रातों में ही जीवित हूँ,
शुक्लपक्ष की रातें ,
तारो भरी रातें ,
रातें मेरी वास्तविक जगह है,
मेरा पत्ता है,
रात के मोर्चे पर ही मेरी तैनाती है,
मेरी रातें उन हजारों -लाखों मेहनतकशो के नाम,
जो आज भी भूखे पेट सोयें है.