मैं बेफिक्र होकर सोया हुआ था
तेरे नर्म ख्वाबों में खोया हुआ था
खुदा जाने फ़िर क्या ज़रूरत हुई
बिना कुछ कहे तू जो रुखसत हुई
मुझे लग रहा था के लौट आएगी
इस तरह तू क्यों चली जायेगी
मैं पूरा यकीं तुझपे रखता रहा
मुसलसल तेरी राह तकता रहा
अपने मुकद्दर से दम भर लड़ा
अब तक उसी मोड़ पर हूँ खड़ा
दिल में अगर प्यार बाकी रहे
फिर चली आना बिना कुछ कहे