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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

एक चिट्ठी मिली ..... मेरे यार की ---(लक्ष्मी नारायण लहरे )

बरसों की खबर -खबर बनकर रह गयी
गलियों की चौड़ाई सिमट गयी
उपाह-फोह की आवाज कमरे में दम तोड़ दी
बदल ,गयी लोग -बाक की भाषा
नजरें बदल गयी नया बरस आ गया
ख़बरों में नई उमंग -तरंग नए संपादक आ गए
गलियां में जो हवा बह रही थी
ओ हवा प्रदूषित हो गयी
प्यार करने वाले पथिक
अपनी राह बदल दी
लोगों का भ्रम जब टूटा
पथिक की नई कहानी बन गयी
सच है ,भ्रम का कोई पर्याय नहीं होता
मृत्यु निश्चित है पर
उस पर किसी का विचार नहीं जमता
जीने की कवायद जारी है
कोई प्रेम से ,
नफरत नहीं करता
समाज और परिवार का कोई नाम बदनाम नहीं करता
लोग हंसते
इसलिए परिवार प्रेम पर विश्वाश नहीं करता
मेरे यार की खबर है .....
एक चिट्ठी मिली है ..
प्रेम पत्र ,
नहीं -नहीं
बधाई -पत्र है
नए वर्ष की
लिखा है ....
दोस्ती करके किसी को धोखा ना देना
दोस्त को आंसू का तोहफा ना देना
कोई रोये आपको याद करके ...
जिंदगी में किसी को ऐसा मौका ना देना
नव वर्ष हो मंगलमय !
ऐसा सन्देश हर अंतिम ब्यक्ति को लिखना ...


रविवार, 1 अप्रैल 2012

जिहाद के मायने धर्मयुद्व नहीं---अतुल चंद्र अवस्थी

तुम्हारे लिए जिहाद के मायने धर्मयुद्व है,

लेकिन धर्म की परिभाषा क्या जानते हो ।

जिसकी खातिर तुमने इंकलाब का नारा बुलंद किया,

तोरा बोरा की पहाडियों में खाक छानते रहे,

09/11 की रात अमेरिका को खून से नहलाया,

आतंक का ऐसा पर्याय बने कि,

यमराज को भी पसीना आया।

लेकिन क्या जिहाद की भाषा समझ सके;

जिस जिहाद की खातिर लाखों परिवारों की खुशियां छीनी।

मासूमों के हाथों में किताब की जगह एके 47 थमा दी।

गली मोहल्लों चौक चौराहों पर तुमने खेली खून की होली।

धरती माता के सीने को किया गोलियों से छलनी।

देश की धड़कन मुंबई को किया लहूलुहान।

लेकिन अंजाम क्या हुआ,

तुमने भोगा सारी दुनिया ने देखा।

जिस पर था तुम्हे नाज उन्होने ही मुंह मोड़ लिया।

कल तक जो तुम्हारे आतंकी इरादों को देते थे हवा।

उन्होने ही एबटाबाद में तुम्हारी मौजूदगी से किनारा कस लिया।

अंतिम समय में फिर धरती मां ही तुम्हारा सहारा बनी।

वही धरती मां जिसकी छाती पर तुमने पल-पल गोलियां बरसाई।

मां और बेटे के रिश्ते को जिंदा रहते कलंकित किया।

लेकिन अमेरिकी आपरेशन में तुम्हारी आंख बंद होने के बाद।

उसी धरती मां ने तुम्हे अपने लहूलुहान आंचल में सहेज लिया।

इसलिए क्यूंकि तुम भी उसके जिगर के टुकडे़ थे।

मां को खून से नहलाने के बाद भी उसे तुमसे न गिला था न शिकवा।

क्योंकि मां तो मां होती है।

जिहाद----2

तुमने बारुद के ढेर पर मासूमों के अरमान सुलगाए।

जिहाद के नाम पर उनमें नफरत की भावना भरी।

अपनी धरती मां के खिलाफ ही उकसाया।

सभ्य नागरिक से उन्हे दानव बनाया।

तब शायद तुम्हे नहीं पता था कि,

पिता के कर्मो का फल पु़त्र को भुगतना पड़ता है।

बेटा पिता के छोटे बड़े सभी कर्मो का जबाब देह बनता है।

लेकिन जब एहसास हुआ तब काफी देर हो चुकी थी।

लेकिन यह एहसास अपने उन सिपहसालारों को करा दो।

जो अब भी तुम्हारे पग चिन्हों पर चलने की हुकांर भर रहे हैं।

धरती मां के आंचल को दागदार कर रहे हैं।

उन्हे स्वप्न में जाकर ही सही, यह संदेश दे दो।

कि जिहाद का अर्थ धर्म-मजहब के लिए लड़ना नहीं है।

जिहाद का अर्थ देश की तरक्की के लिए संघर्ष करना है।

अगर तुम यह संदेश देने में सफल रहे।

तो फिर धरा पर वसुधैव कुटुंबकम की कल्पना साकार होगी।

चारों ओर अमन चैन होगा, मानवता शर्मसार न होगी।

इसलिए एक बार फिर अपने मन को टटोलो।

मन में छिपी आंतंकी भावना की आहुति देकर,

हिंदू मुस्लिम सिख इसाई की कल्पना को साकार करो।

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