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शनिवार, 19 सितंबर 2009

प्राचीन मंदिर मे -------- "किशोर कुमार खोरेन्द्र"

पुरस्कृत रचना ( सांत्वना पुरस्कार हिन्दी साहित्य मंच द्वितीय कविता प्रतियोगिता)


धरती के इस


बहुत

प्राचीन

मन्दिर के भीतर

जर्जर हो चुके अंधेरो मे

उतरकर

सीडीया

गर्भालय मे

उजालो की हो ,कहीं पर

कुछ बुँदे पडी

यह खोजता हू मै



श्लोको की अनुगूँज

अमृत सी सहेजी

भरी पडी हो

किसी स्वर्ण -कुम्भ मे

यह खोजता हू मै




-शुभ आशीर्वादों को

जिसके हाथो ने दीये

उस भगवान के

बिखरे

भग्न -अवशेषों मे

प्राण खोजता हू मै

लौट कर गए

पद -चिह्नों मे

लोगो की श्रद्धा के

ठहरे हुवे

आभार

खोजता हू मै





-छूते है

मूर्तियों के हाथ

उन हाथो

की उंगलियों मे

सबकी पूजा मे

समर्पित

अटके

अश्रु से भरे नयन

खोजता हू मै

वह

देह रहित

अजन्मी

शाश्वत

मगर

इन्तजार मे मेरे

ध्यानस्थ

चहु ओर

व्याप्त -बाहुपाश

खोजता हू मै

जलते दीपक

की ज्योति की

जलती -प्रतिछाया

का

चिर -आभास

खोजता हू मै




बहुत प्राचीन ,धरती के

इस

मन्दिर के भीतर

जर्जर हो चुके

अंधेरो मे उतर कर सीडिया

गर्भालय मे

उजालो की हो कुछ बुँदे पडी

यह खोजता हू मै .