हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

रविवार, 20 नवंबर 2011

दिल अब दिल नहीं (ग़ज़ल) सन्तोष कुमार "प्यासा"

मेरा दिल अब दिल नहीं, एक वीरान सी बस्ती है
रूठ गई खुशियाँ, बेबसी मुझपर हंसती है
क्या था मेरा क्या पता, क्या है मेरा क्या खबर
खुद से हूँ खफा अब मै, लुट गई मेरी हस्ती है
ये जिंदगी है बोझ मुझपर या जिंदगी पर बोझ मैं
न चैन की सांसे मयस्सर मुझे, न मौत ही सस्ती है
तुफानो में गर मैं घिरता तो फक्र करता हार पर
मझधार में नहीं यारो, किनारे पर डूबी मेरी कस्ती है