कविता
बेटी को भी जन्मने दो
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
===================
मचल रही जो दिल में धड़कन
उसको जीवन पाने दो,
होठों की कोमल मुस्कानें
जीवन में खिल जाने दो।
नन्हा सा मासूम सा कोमल
गुलशन में है फूल खिला,
पल्लवित, पुष्पित होकर उसको
जहाँ सुगन्धित करने दो।
खेले, कूदे, झूमे, नाचे
वह भी घर के आँगन में,
चितवन की चंचलता में
स्वर्णिम सपने सजने दो।
मानो उसको बेटों जैसा
आखिर वह भी बेटी है,
आने वाली मधुरिम सृष्टि
उसके आँचल में पलने दो।
धोखा है यह वंश-वृद्धि का
जो बेटों से चलनी है,
वंश-वृद्धि के ही धोखे में
बेटी को भी जन्मने दो।
बेटी को भी जन्मने दो
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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मचल रही जो दिल में धड़कन
उसको जीवन पाने दो,
होठों की कोमल मुस्कानें
जीवन में खिल जाने दो।
नन्हा सा मासूम सा कोमल
गुलशन में है फूल खिला,
पल्लवित, पुष्पित होकर उसको
जहाँ सुगन्धित करने दो।
खेले, कूदे, झूमे, नाचे
वह भी घर के आँगन में,
चितवन की चंचलता में
स्वर्णिम सपने सजने दो।
मानो उसको बेटों जैसा
आखिर वह भी बेटी है,
आने वाली मधुरिम सृष्टि
उसके आँचल में पलने दो।
धोखा है यह वंश-वृद्धि का
जो बेटों से चलनी है,
वंश-वृद्धि के ही धोखे में
बेटी को भी जन्मने दो।