निपटा जल्दी जल्दी
दुनियाभर के किस्से
घर- काम की बातें
खिड़की की देहलीज़ पर
रोज़ हाल ए दिल कहते सुनते हैं
मैं और चाँद !
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रात सरक सरक के काटें
ख़ामोशियों की राह बांचें
पल पल ढलते जाएँ
फिर भी नित रोज़ आयें
मैं और चाँद !
शुक्रवार, 4 मार्च 2011
क्षणिकाएं--------(वीनस)
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7 comments:
सरल और स्पष्ट रचना
AKARSHAK
RACHANA...
bahut sundar kavita !
सुन्दर क्षणिकाएं .बधाई.
वाह! चांद की गवाही खूब बयां की आपकी क्षणिकाओं ने!
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर सहज भाव। बधाई।
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