हवाओं में प्यार की खुशबू,
बिखरी हुई है ,
फिजाएं भी महकी,
हुई है,
खामोश रातें रौशन ,
हुई हैं,
चांदनी भी चंचल ,
हुई है ,
बूदें जैसे मोती,
हुई हैं,
सूरज की किरणें चमकीली
हुई हैं,
बागों की कलियां खिल सी ,
गयी हैं,
अम्बर से घटाएं ,
बहने लगी हैं,
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।