हम आज़ाद हैं
दुनिया के सब से बडे लोकतन्त्र मे
आज हम आज़ाद हैं
आज़ाद हैंभ्रष्टाचार के लिये
चोरी डकैती, व्यभिचार के लिये
पर नहीं आज़ाद
अपने अधिकार के लिये
हम आज़ाद हैंदेश की
सरकार बनाने में
प्रजातन्त्र के गुन गाने मे
पर नहीं आज़ाद
दो वक्त की रोटी पाने मे
हम आज़ाद हैं
कानून की धज्जियां उडाने मे
बेकसूर को सज़ा दिलाने मे
पर नही आज़ाद
कानून की आँख से
पट्टी उठाने मे
4 comments:
कपिला जी , कविता के माध्यम से आपने सुन्दर व्यंग्य किया है । सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद। लंबे समय के बाद आपका आगमन बहुत ही सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति के साथ हुआ है । आपका बहुत बहुत स्वागत है । हिन्दी साहित्य मंच पर ।
कम शब्दों में आपने आज की आजादी का जो खाका तैयार किया अपनी लघु कविता के माध्यम से वो बेहद सराहनीय है । हमारी आजादी आज क्या है ? आपने सच को बयान किया । अच्छी प्रस्तुति । धन्यवाद
समाज के नग्न यथार्थ का सुंदर प्रस्तुतिकरण।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बहिन निर्मला कपिला जी।
लोक-तन्त्र की खामियों को उजागर
करने के लिए,
शुक्रिया।
आपकी कविता से हिन्दी साहित्य मंच
धन्य हो गया।
यह आपका ही ब्लाग है।
आशा है कृपा दृष्टि बनायें रखेंगी।
नव-सम्वत्सर की बधाई स्वीकार करें।
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