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शनिवार, 23 मई 2009

laghu kathaa

एहसास
बस मे भीड थी1 उसकी नज़र सामनीक सीट पर पडी जिसके कोने मे एक सात आठ साल का बच्चा सिकुड कर बैठा था1 साथ ही एक बैग पडा था
'बेटे आपके साथ कितने लोग बैठे हैं/'शिवा ने ब्च्चे से पूछा जवाब देने के बजाये बच्चा उठ कर खडा हो डरा सा.... कुछ बोला नहीं 1 वो समझ गया कि लडके के साथ कोई हैउसने एक क्षण सोचा फिर अपनी माँ को किसी और सीट पर बिठा दिया और खाली सीट ना देख कर खुद खडा हो गया1
तभी ड्राईवर ने बस स्टार्ट की तो बच्चा रोने लगा1 कन्डक्टर ने सीटी बजाई ,एक महिला भग कर बस मे चढी उस सीट से बैग उठाया और बच्चे को गोद मे ले कर चुप कराने लगी1उसे फ्रूटी पीने को दी1बच्चा अब निश्चिन्त हो गया था1 कुछ देर बाद उसने माँ के गले मे बाहें डाली और गोदी मे ही सोने लग गया1 उसके चेहरे पर सकून था माँ की छ्त्रछाया का
' माँ,मैं सीट पर बैठ जाता हूँ1मेरे भार से तुम थक जाओगी1''
''नहीं बेटा, माँ बाप तो उम्र भर बच्चों का भार उठा सकते हैं1 तू सो जा1''
माँ ने उसे छाती से लगा लिया
शिवा जब से बस मे चढा था वो माँ बेटे को देखे जा रहा था1उनकी बातें सुन कर उसे झटका सा लगा1 उसने अपनी बूढी माँ की तरफ देखा जो नमआँखों से खिडकी से बहर झांक रही थी1 उसे याद आया उसकी माँ भी उसे कितना प्यार करती थी1 पिता की मौत के बाद माँ ने उसे कितनी मन्नतें माँग कर उसे भगवान से लिया था1 पिता की मौत के बाद उसने कितने कष्ट उठा कर उसे पल पढाया1 उसे किसी चीज़ की तंगी ना होने देती1जब तक शिव को देख न लेती उसखथ से खाना ना खिल लेती उसे चैन नहिं आता1 फिर धूम धाम से उसकी शादी की1.....बचपन से आज तक की तसवीर उसकी आँखों के सामने घूम गयी1
अचानक उसके मन मे एक टीस सी उठी........वो काँप गया .......माँकी तरफ उस की नज़र गयी......माँ क चेहरा देख कर उसकी आँखों मे आँसू आ गये....वो क्या करने जा रहा है?......जिस माँ ने उसे सारी दुनिया से मह्फूज़ रखा आज पत्नी के डर से उसी माँ को वृ्द्ध आश्रम छोडने जा रहा है1 क्या आज वो माँ का सहारा नहीं बन सकता?
''ड्राईवर गाडी रोको""वो जोर से चिल्लाया
उसने माँ का हाथ पकडा और दोनो बस से नीचे उतर गये1
जेसे ही दोनो घर पहुँचे पत्नी ने मुँह बनाया और गुस्से से बोली''फिर ले आये? मै अब इसके साथ नहीं रह सकती1'' वो चुप रहा मगर पास ही उसका 12 साल का लडका खडा था वो बोल पडा....
''मम्मी, आप चिन्ता ना करें जब मै आप दोनो को बृ्द्ध आश्रम मे छोडने जाऊँगा तो दादी को भी साथ ही ले चलूंगा1 दादी! चलो मेरे कमरे मे मुझे कहानी सुनाओ1'' वो दादी की अंगुली पकड कर बाहर चला गया..दोनो बेटे की बात सुन कर सकते मे आ गये1 उसने पत्नी की तरफ देखा.....शायद उसे भी अपनी गलती का एहसास हो गया था1

विजय की दो रचनाएं - " तस्वीर " और " बीती बातें "

तस्वीर


मैंने चाहा कि


तेरी तस्वीर बना लूँ इस दुनिया के लिए,


क्योंकि मुझमें तो है तू ,हमेशा के लिए....



पर तस्वीर बनाने का साजो समान नही था मेरे पास.


फिर मैं ढुढ्ने निकला ; वह सारा समान , ज़िंदगी के बाज़ार में...



बहुत ढूंढा , पर कहीं नही मिला; फिर किसी मोड़ पर किसी दरवेश ने कहा,


आगे है कुछ मोड़ ,तुम्हारी उम्र के ,


उन्हें पार कर लो....


वहाँ एक अंधे फकीर कि मोहब्बत की दूकान है;


वहाँ ,मुझे प्यार कर हर समान मिल जायेगा..





मैंने वो मोड़ पार किए ,सिर्फ़ तेरी यादों के सहारे !!


वहाँ वो अँधा फकीर खड़ा था ,


मोहब्बत का समान बेच रहा था..


मुझ जैसे,


तुझ जैसे,


कई लोग थे वहाँ अपने अपने यादों के सलीबों और सायों के साथ....


लोग हर तरह के मौसम को सहते वहाँ खड़े थे.


उस फकीर की मरजी का इंतज़ार कर रहे थे....


फकीर बड़ा अलमस्त था...


खुदा का नेक बन्दा था...


अँधा था......



मैंने पूछा तो पता चला कि


मोहब्बत ने उसे अँधा कर दिया है !!


या अल्लाह ! क्या मोहब्बत इतनी बुरी होती है..


मैं भी किस दुनिया में भटक रहा था..


खैर ; जब मेरी बारी आई


तो ,उस अंधे फकीर ने ,


तेरा नाम लिया ,और मुझे चौंका दिया ,


मुझसे कुछ नही लिया.. और


तस्वीर बनाने का साजो समान दिया...


सच... कैसे कैसे जादू होते है जिंदगी के बाजारों में !!!!



मैं अपने सपनो के घर आया ..


तेरी तस्वीर बनाने की कोशिश की ,


पर खुदा जाने क्यों... तेरी तस्वीर न बन पाई.


कागज़ पर कागज़ ख़त्म होते गए ...


उम्र के साल दर साल गुजरते गये...


पूरी उम्र गुजर गई


पर


तेरी तस्वीर न बनी ,


उसे न बनना था ,इस दुनिया के लिए ....न बनी !!



जब मौत आई तो , मैंने कहा ,दो घड़ी रुक जा ;


वक्त का एक आखरी कागज़ बचा है ..उस पर मैं "उसकी" तस्वीर बना लूँ !


मौत ने हँसते हुए उस कागज़ पर ,


तेरा और मेरा नाम लिख दिया ;


और मुझे अपने आगोश में ले लिया .


उसने उस कागज़ को मेरे जनाजे पर रख दिया ,


और मुझे दुनियावालों ने फूंक दिया.


और फिर..


इस दुनिया से एक और मोहब्बत की रूह फना हो गई..



बीती बातें




दिल बीती बातें याद करता रहा


यादों का चिराग रातभर जलता रहा


नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा


दिल बीती बातें याद करता रहा



जाने किसके इन्तेजार मे


शब्बा सफर कटता रहा


जो गीत तुमने छेड़े थे


रात भर मैं वह गुनगुनाता रहा


दिल बीती बातें याद करता रहा



शमा पिगलती ही रही थी


और दूर कोई आवाज दे रहा


जुंबा जो कह पा रही थी


अश्क एक एक दास्तां कहता रहा


दिल बीती बातें याद करता रहा








यादें पुरानी आती ही रही,


दिल धीमे धीमे दस्तक देते रहा


चिंगारियां भड़कती ही रही


टूटे हुए सपनो से कोई पुकारता रहा


दिल बीती बातें याद करता रहा



दिल बीती बातें याद करता रहा


यादों का चिराग रातभर जलता रहा


नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा


दिल बीती बातें याद करता रहा