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सोमवार, 26 अप्रैल 2010

गर्मी

जालिम है लू जानलेवा है ये गर्मी



काबिले तारीफ़ है विद्दुत विभाग की बेशर्मी



तड़प रहे है पशु पक्षी, तृष्णा से निकल रही जान



सूख रहे जल श्रोत, फिर भी हम है, निस्फिक्र अनजान




न लगती गर्मी, न सूखते जल श्रोत, मिलती वायु स्वक्ष



गर न काटे होते हमने वृक्ष



लुटी हजारों खुशियाँ, राख हुए कई खलिहान


डराता रहता सबको, मौसम विभाग का अनुमान


अपना है क्या, बैठ कर एसी, कूलर,पंखे के नीचे गप्पे लड़ाते हैं



सोंचों क्या हाल होगा उनका, जो खेतों खलिहानों में दिन बिताते है



अब मत कहना लगती है गर्मी, कुछ तो करो लाज दिखाओ शर्मी


जाकर पूंछो किसी किसान से क्या है गर्मी