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शनिवार, 28 मार्च 2009

रजनी माहर की एक कविता- प्रस्तुति डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक




मेरी गुड़िया जब से, मेरे जीवन में आयी हो।

सूने घर आँगन में मेरे, नया सवेरा लायी हो।

पतझड़ में बन कर बहार, मेरे उपवन में आयी हो।

गुजर चुके बचपन को मेरे, फिर से ले आायी हो।

सुप्त हुई सब इच्छाओ को, तुमने पुनः जगाया।

पानी को मम कहना, मुझको तुमने ही सिखलाया।

तुमने किट्टू को तित्तू ,तुतली जबान से बतलाया।

मम्मी को मी पापा को पा,कह अपना प्यार जताया।

मेरी लाली-पाउडर तुम, अपने गालों पर मलती हो।

मुझको कितना अच्छा लगता, जब ठुमके भर कर चलती हो।

सजे-सजाये घर को तुम, पल भर मे बिखराती हो।

फिर भी गुड़िया रानी तुम, मम्मी को हर्षाती हो।

छोटी सी भी चोट तुम्हारी, मुझको बहुत रुलाती है।

तुतली-तुतली बातें तेरी, मुझको बहुत लुभाती हैं।

दादा जी की ऐनक-डण्डा, लेकर तुम छिप जाती हो।

फिर भी गुड़िया रानी तुम, दादा जी को भाती हो।

अपनी भोली बातों से तुम, सबके दिल पर छायी हो।

मेरी गुड़िया जब से, मेरे जीवन में आयी हो।

सूने घर आँगन में मेरे, नया सवेरा लायी हो।


हम आजाद है ..........[एक कविता] - निर्मला कपिला जी की प्रस्तुति


हम आज़ाद हैं
दुनिया के सब से बडे लोकतन्त्र मे
आज हम आज़ाद हैं
आज़ाद हैंभ्रष्टाचार के लिये
चोरी डकैती, व्यभिचार के लिये
पर नहीं आज़ाद
अपने अधिकार के लिये
हम आज़ाद हैंदेश की
सरकार बनाने में
प्रजातन्त्र के गुन गाने मे
पर नहीं आज़ाद
दो वक्त की रोटी पाने मे
हम आज़ाद हैं
कानून की धज्जियां उडाने मे
बेकसूर को सज़ा दिलाने मे
पर नही आज़ाद
कानून की आँख से
पट्टी उठाने मे