हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

शुक्रवार, 18 मई 2012

गर्मी (कविता) सन्तोष कुमार "प्यासा"



(विभिन्न रंगों से रंगी एक प्रस्तुति, हालिया समय का स्वरूप, गर्मी का भयावह रूप,)

जालिम है लू जानलेवा है ये गर्मी


काबिले तारीफ़ है विद्दुत विभाग की बेशर्मी


तड़प रहे है पशु पक्षी, तृष्णा से निकल रही जान


सूख रहे जल श्रोत, फिर भी हम है, निस्फिक्र अनजान


न लगती गर्मी, न सूखते जल श्रोत, मिलती वायु स्वक्ष


गर न काटे होते हमने वृक्ष


लुटी हजारों खुशियाँ, राख हुए कई खलिहान


डराता रहता सबको, मौसम विभाग का अनुमान


अपना है क्या, बैठ कर एसी, कूलर,पंखे के नीचे गप्पे लड़ाते हैं


सोंचों क्या हाल होगा उनका, जो खेतों खलिहानों में दिन बिताते है


अब मत कहना लगती है गर्मी, कुछ तो करो लाज दिखाओ शर्मी


जाकर पूंछो किसी किसान से क्या है गर्मी....

6 comments:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

इस मौसम का अच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही सार्थक एवं सामयिक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।

Onkar ने कहा…

sundar chitran

दिनेश शर्मा ने कहा…

वाह!वाह!वाह!

ASHOK BABU MAHOUR ने कहा…

BAHUT HI ACHHI KAVITA HAI

Rishabh Shukla ने कहा…

good job