क्या हुआ, क्या कहा आपने मै कहावत भुल गया हूँ, अरे नही ऐसी कोई बात नही है। अगर आपको लगता है कि मै कहावत भूल गया हूँ तो आप ऐसा बिल्कुल ना सोचें मुझे भलिभाँती कहावत याद है। आखिर क्या करुं हम और आप ही तो कहते है कि बदलाव व परिवर्तन बहुत जरुरी है हम और आप कहते है कि हमें जमाने के साथ-साथ चलना चाहिये नही तो हम दुनियाँ मे पीछे हो जायेगें। हम और आप बस परिवर्तन की बात करते है लेकिन हम परिवर्तन करते नही , इस चिज को लेकर हमारी सरकार बहुत जागरुक है। अगर देखाँ जाये तो हामरे सरकार के साथ कुछ और इसका ख्याल रखते है, जैसे उच्च न्यायालय , और कोई है जो इस परिवर्तन के लिए आन्दोलन तक करने को तैयार है कौन नही पता चलिए तो मै आपको बताता हूँ वह हैं हमारे बालीवुड की हाट व सेक्सी हिरोईन सेलिना जेटली वैसे आप इनको जानते जरुर होगें गरम जो ठहरी। अगर देखाँ जाये तो इस कङी मे फिल्म जगत का एक और नाम आता है, आता है या आती है इसमे थोङा सा सशंय है, हाँ तो वो और कोई नही डार्लिंग है नही समझे अरे हमारा या हमारी बोबी डार्लिग, इनको भी ये बदलाव चाहिये।
चलिए बहुत हो चुका अब मै बताता हूँ कि मै किस बदलाव की बात कर रहाँ हूँ।
मै बात कर रहा हूँ समलैंगिक संबंधों की, जिसे कुछ लोग समय के साथ समय की माँग कहते है। जी हाँ अब हमारे समाज मे पुरुष के लिए महिला और महिला के लिए पुरुष कि आवश्यकता नही है क्यो की अब हमारे समाज में एक पुरुष के दूसरे पुरुष अथवा एक महिला के दुसरी महिला के साथ सहमति पर आधारित यौन संबधों को अपराध नहीं माना जा सकता, क्यों की ये दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला है। उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दण्ड संहिता की धारा-377 को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए इसे रद्द कर दिया है। अब तो आप मेरे कहावत का मतलब समझ ही गयें होगें। समलैंगिक सेक्स को कानूनी मान्यता देने वाला भारत दुनिया का 127 वां देश बन गया है. दुनिया के कई अन्य देश इसे पहले से ही मान्यता दे चुके हैं वहीं अभी भी 80 देश ऐसे हैं जहाँ यह मान्य नही है।
यह कानून करीब 150 साल पुराना है. धारा 377 का समावेश लार्ड मैकॉले ने किया किया था. इस धारा के अनुसार समलैंगिक संबंध और अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करना गैर कानूनी और सजापात्र गुनाह माना गया है. धारा 377 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध स्वैच्छा से ही सही – स्थापति करता है तो यह अपराध है. सन 1935 में इस धारा में सुधार किया गया और इसमे मुखमैथुन भी जोड दिया गया.।
देखाँ जाये तो ये कोई नया नही है, इसको लेकर विद्वानो मे हमेशा विवाद रहें है। प्राचीन धर्मग्रथों में शीव के अर्धनारिश्वर अवतार और विष्णु के मोहिनी अवतार का काफी जिक्र आता है. पौराणिक इतिहास का सबसे चर्चित समलिंगी पात्र शायद शिखंडी है. भीष्म की मृत्यु में महत्वपूर्ण पात्र निभाने वाले शिखंडी का जन्म कन्या के रूप में हुआ था, परंतु उसके पिता द्रुपद को यकीन था कि शिव के वचनानुसार शिखंडी एक दिन पुरूष बन जाएगा और उसे उसी तरह से पाला गया था, इससे शिखंडी महिला और पुरूष के बीच में पीस गया।
कई इस्लामी विद्वान भी समलैंगिकता की हिमायती थे अथवा स्वयं समलैंगिक थे. प्रसिद्ध लेखक सलीम किदवई के अनुसार मीर तकी मीर इसका एक उदाहरण है,. इसके अलावा शरमद शाहीद जिन्हे हरे भरे शाह के नाम से भी जाना जाता है और जिनकी कब्र दिल्ली की जामा मस्जिद में है, वे भी समलैंगिक थे ऐसी मान्यता है। वास्तव में यह विषय काफी जटील है. लगभग हर धर्म के अगुवा इसका विरोध कर रहे हैं वहीं समाज का एक ऐसा वर्ग भी है जो इसका प्रखर हिमायती है. इस सब को देखते हुए आने वाले समय में इस विषय पर जोरदार बहस होने की सम्भावना है. और सरकार के लिए यह एक एक चुनौती है।
जहाँ तक मेरा मानना है हम इस घिनौने काम को क़ानूनी रूप देकर हम भविष्य मे और एड्स के मरीज़, दिमागी मरीज़ पैदा करेंगे, इस से ज़्यादा कुछ नही दे सकते. ये समलैंगिकता एक ज़ेहनी बीमारी है और कुछ नही है. इसे नाजायज़ ही कर देना चाहिए. हम पश्चिम देशों के अंधे पैरोकार होते जा रहे हैं, अगर कल को ये मा बहन से भी संबंध जायज़ कर देंगे तो क्या हम, नही ना । समलैंगिकता पर बहस हो सकती है, अपने अपने विचार हो सकते हैं, लेकिन प्राकृतिक नहीं है। इस फैसले के बाद तो लगता है कि जल्दी ही पशुओं के साथ, सेक्स को भी अदालत की मान्यता मिल जाएगी। किन अधिकारों का हनन होता है, हनन नहीं होता है लेकिन सभ्यता और संस्कृति भी कोई चीज होती है। अदालत से यह भी आज्ञा ली जानी चाहिए कि बेडरुम के बजाय आम चौराहों पर कुत्तों की तरह सेक्स किया जाए तो क्या एतराज है। जब वह आम सहमति से हो रहा हो। पूरे देश को महासत्ता बनने के बजाय सेक्स सत्ता बना दो........... क्यों क्या ख्याल है।