इस कविता को मैंने "महादेवी वर्मा" की कविता "जो तुम आ जाते एक बार" से, प्रेरित होकर लिखा है
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घनीभूत पीड़ा में ह्रदय डूबा
अश्रुओं संग बह रहा विषाद
जल बिन मीन तडपे जैसे
तडपाए, प्रेम उन्माद
फिर सजीव हो जाए आसार
जो वो आ जाएं एक बार
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उसे पाने की बढ़ी लालसा ऐसी
पल पल होती चाहत प्रखर
ह्रदय के कोरे पृष्ठों में
लिख दो आकर, प्रिताक्षर
मेरे मन के उपवन में छा जाए बहार
जो वो आ जाएं एक बार
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अलि कलि पर जब मंडराए
नभ पर विचरें जब विहंग
खो जाऊं आलिंगन में उसकी
मन में उठे ऐसी तरंग
बज उठें ह्रदय के तार तार
जो वो आ जाएं एक बार
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मेरे मस्तिष्क के हर कोने में छाई
उसके स्मृति की सुवासित सुरभि
अब न रुके आवेग अनुरक्ति का
समय, काल, अंतराल बताए
प्रीत न दाबे दबी
एक बने जीवन का आधार
जो वो आ जाएं एक बार
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घनीभूत पीड़ा में ह्रदय डूबा
अश्रुओं संग बह रहा विषाद
जल बिन मीन तडपे जैसे
तडपाए, प्रेम उन्माद
फिर सजीव हो जाए आसार
जो वो आ जाएं एक बार
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उसे पाने की बढ़ी लालसा ऐसी
पल पल होती चाहत प्रखर
ह्रदय के कोरे पृष्ठों में
लिख दो आकर, प्रिताक्षर
मेरे मन के उपवन में छा जाए बहार
जो वो आ जाएं एक बार
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अलि कलि पर जब मंडराए
नभ पर विचरें जब विहंग
खो जाऊं आलिंगन में उसकी
मन में उठे ऐसी तरंग
बज उठें ह्रदय के तार तार
जो वो आ जाएं एक बार
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मेरे मस्तिष्क के हर कोने में छाई
उसके स्मृति की सुवासित सुरभि
अब न रुके आवेग अनुरक्ति का
समय, काल, अंतराल बताए
प्रीत न दाबे दबी
एक बने जीवन का आधार
जो वो आ जाएं एक बार
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