दी मैनें दस्तक जब इस जहाँ में
कई ख्वाइशें पलती थी मन के गावं में
सोचा था कुछ करके जाऊंगी
जहाँ को कुछ बनकर दिखलाऊंगी
बचपन बदला जवानी ने ली अंगड़ाई
जिन्दगी ने तब अपनी तस्वीर दिखाई
मन पर पड़ने लगी अब बेड़ियां
रिश्तों में होने लगी अठखेलियां
जुड़ गए कुछ नव बन्धन
मन करता रहा स्पन्दन
बनी पत्नि बहू और माँ
अर्पित कर दिया अपना जहाँ
भूली अपने अस्तित्व की चाह
कर्तव्य की पकड़ ली राह
रिश्तों की ये भूल भूलैया
बनती रही सबकी खेवैया
फिसलता रहा वक्त का पैमाना
न रुका कोई चलता रहा जमाना
चलती रही जिन्दगी नए पग
पकने लगी स्याही केशों की अब
हर रिश्ते में आ गई है दूरी
जीना बन गया है मजबूरी
भूले बच्चे भूल गई दुनियां
अब मैं हूँ और मन की गलियां
काश मैनें खुद से भी रिश्ता निभाया होता
रिश्तों संग अपना ‘अस्तित्व’ भी बचाया होता.................
कई ख्वाइशें पलती थी मन के गावं में
सोचा था कुछ करके जाऊंगी
जहाँ को कुछ बनकर दिखलाऊंगी
बचपन बदला जवानी ने ली अंगड़ाई
जिन्दगी ने तब अपनी तस्वीर दिखाई
मन पर पड़ने लगी अब बेड़ियां
रिश्तों में होने लगी अठखेलियां
जुड़ गए कुछ नव बन्धन
मन करता रहा स्पन्दन
बनी पत्नि बहू और माँ
अर्पित कर दिया अपना जहाँ
भूली अपने अस्तित्व की चाह
कर्तव्य की पकड़ ली राह
रिश्तों की ये भूल भूलैया
बनती रही सबकी खेवैया
फिसलता रहा वक्त का पैमाना
न रुका कोई चलता रहा जमाना
चलती रही जिन्दगी नए पग
पकने लगी स्याही केशों की अब
हर रिश्ते में आ गई है दूरी
जीना बन गया है मजबूरी
भूले बच्चे भूल गई दुनियां
अब मैं हूँ और मन की गलियां
काश मैनें खुद से भी रिश्ता निभाया होता
रिश्तों संग अपना ‘अस्तित्व’ भी बचाया होता.................