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रविवार, 5 अप्रैल 2009

गजल........................निर्मला जी


अपना इतिहास पुराना भूल गये
विरासत का खज़ाना भूल गये

रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
बसंतों का जमाना भूल गये

दौलत की अँधी दौड मे लोग
मानवता निभाना भूल गये

भूल गये गरिमा आज़ादी की
शहीदों का कर्ज़ चुकाना भूल गये

जो धर्म के ठेकेदार बने
खुद धर्म निभाना भूल गये

पत्नी के आँचल मे ऐसे उलझे
माँ का पता ठिकाना भूल गये

पर्यावरण पर भाषण देते देते
वो पेड लगाना भूल गये

भूल गये सब प्यार का मतलब
लोग हंसना हसाना भूल गये