हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

जागरण [लघुकथा]-कुमारेन्द्र सिंह सेंगर



कुमारेन्द्र सिंह सेंगर - आपका जन्म जनपद-जालौन, 0प्र0 के नगर उरई में वर्ष 1973 में जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा उरई में तथा उच्च शिक्षा भी उरई में सम्पन्न हुई। लेखन की शुरुआत वर्ष 1882-83 में एक कविता (प्रकाशित) के साथ हुई और तबसे निरंतर लेखन कार्य में लगे हैं। हिन्दी भाषा के प्रति विशेष लगाव ने विज्ञान स्नातक होने के बाद भी हिन्दी साहित्य से परास्नातक और हिन्दी साहित्य में ही पी-एच0डी0 डिग्री प्राप्त की।लेखन कार्य के साथ-साथ पत्रकारिता में भी थोड़ा बहुत हस्तक्षेप हो जाता है। वर्तमान तक देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। रचनाओं में विशेष रूप से कविता, ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा, आलेख प्रिय हैं। महाविद्यालयीन अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद लेखन को शोध-आलेखों की ओर भी मोड़ा। अभी तक एक कविता संग्रह (हर शब्द कुछ कहता है), एक कहानी संग्रह (अधूरे सफर का सच), शोध संग्रह (वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यासों में सौन्दर्य बोध) सहित कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।

युवा आलोचक, सम्पादक श्री, हिन्दी सेवी, युवा कहानीकार का सम्मान प्राप्त डा0 सेंगर सामाजिक संस्थादीपशिखा’, शोध संस्थासमाज अध्ययन केन्द्रतथापी-एच0 डी0 होल्डर्स एसोसिएशनके साथ-साथ जन-सूचना अधिकार का राष्ट्रीय अभियान का संचालन।सम्प्रति एक साहित्यिक पत्रिकास्पंदनका सम्पादन कार्य कर रहे हैं। एक शोध-पत्रिका का भी सम्पादन किया जा रहा है।
इंटरनेट पर लेखन की शुरुआत ब्लाग के माध्यम से हुई। अपने ब्लाग के अतिरिक्त कई अन्य ब्लाग की सदस्यता लेकर वहाँ भी लेखन चल रहा है। शीघ्र ही एक इंटरनेट पत्रिका का संचालन करने की योजना है।

सम्पर्क- 110 रामनगर, सत्कार के पास, उरई (जालौन) 0प्र0 285001
फोन - 05162-250011, 256242, 9415187965, 9793973686


जागरण

वह अपनी पूरी ताकत से
, अपनी पूरी शक्ति लगा कर सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी। सीने से अपनी नन्हीं बच्ची को दोनों हाथों के घेरे में छिपाये बार-बार पीछे मुड़ कर भी देखती जाती थी। दो-चार की संख्या में उसके पीछे पड़े लोग उसकी बच्ची को छीन कर मारना चाह रहे थे। तभी अचानक वह एक ठोकर खाकर सड़क पर गिर पड़ी, बच्ची उसकी बाँहों के सुरक्षित घेरे से छिटक कर सड़क पर जा गिरती है। इससे पहले कि वह उठ कर अपनी बच्ची को उठा पाती, एक तेज रफ्तार से दौड़ती हुई कार ने समूची सड़क को बच्ची के खून और लोथड़े से भर दिया। उसकी चीख ने समूचे वातावरण को हिला दिया।
‘‘क्या हुआ?’’ उसकी चीख सुन कर साथ में सो रहे उसके पति ने उसको सहारा देते हुए पूछा। तेज चलती अनियंत्रित सांसों पर किसी तरह नियंत्रण कर उसके मुँह से बस इतना ही निकला-‘‘मैं अपनी बच्ची की हत्या नहीं होने दूँगी।’’ पति ने उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर थपथपाते हुए उसे दिलासा दी। वह मातृत्व भाव समेट कर अपने पेट पर हाथ फेर कर कोख में पल रही बच्ची को दुलार करने लगी।

अनसुलझी वो..............[एक कविता ]

मुझमें ढूढ़ती पहचान अपनी
बार बार वो ,
जान क्या ऐसा
था
जिसकी तलाश थी उसको ,
अनसुलझे सवाल को
लेकर उलझती जाती
कभी मैंने साथ
देना चाहा था
उसकी खामोशियों को,
उसके अकेलेपन को ,
पर
वो दूर जाती रही
मुझसे ,
अचानक ही एक एहसास
पास आता है
बंधन का
बेनाम रिश्ते का ,
जिसमें दर्द है ,
घुटन है ,
मजबूरियां है,
शर्म है ,
तड़प है ,
उम्मीद है ।मैं समझते हुए भी
नासमझ सा
लाचार हूँ
उसके सामने
शायद बयां कर पाऊं कभी
उसको अपने आप में ।

गज़ल


मेहरबानियों का इज़हार ना करो
महफिल मे यूँ शर्मसार ना करो

दोस्त को कुछ भी कहो मगर
दोस्ती पर कभी वार ना करो

प्यार का मतलव नहीं जानते
तो किसी से इकरार ना करो

जो आजमाईश मे ना उतरे खरा
ऐसे दोस्त पर इतबार ना करो

जो आदमी को हैवान बना दें
खुद मे आदतें शुमार ना करो

इन्सान हो तो इन्सानियत निभाओ
इन्सानों से खाली संसार ना करो

कौन रहा है किसी का सदा यहां
जाने वाले का इन्तज़ार ना करो

मरना पडे वतन पर कभी तो
भूल कर भी इन्कार ना करो

पाप का फल वो देता है जरूर
फिर माफी की गुहार ना करो