करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।
मिलन निशा का इक गीत अनोखा,
जो कंठो से फूट पड़े,
खुद पर ना हो जब प्राण का बस प्रिय,
तो प्रेम दिवाने क्या करे?
संगीत जिसका मौन हो,
जो नैनों से ही हो स्वरित।
करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।
वीणा के तार पर फेर अँगुली,
गूँजेगा जो इक मधुर धुन,
ह्रदय मेरे तु अधीर ना हो,
स्व स्पंदन के गीत को सुन।
व्याकुल ना हो इस रात प्रिय,
करना अब तु मन को कुंठित।
करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।
ध्वनि का मिलन हो प्रतिध्वनि से,
मेरे गीत तु जा ह्रदय में समा,
गूँजेगा वो गीत अब यूँ नभ से,
गायेगा प्रणय गीत सारा जहाँ।
बना तु गीत ऐसा जो हर ले मन का,
सारा दुख और विषाद,
तु ना कर इक क्षण भी यूँ अब,
जीवन का व्यतीत।
करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।