कितनी बेबस है नारी जहां में
न हंस पाती है, न रो पाती है
औरों की खुशी और गम में
बस उसकी उमर कट जाती है
नारी से बना है जग सारा
नारी से बने हैं तुम और हम
नारी ने हमें जीवन देकर
हमसे पाए अश्रु अपरम
इन अश्रु का ही आंचल पकड़े
बस उसकी उमर कट जाती है
नारी का अस्तित्व देखो तो ज़रा
कितना मृदु स्नेह छलकाता है
कभी चांदनी बन नभ करे शोभित
कभी मेघों सी ममता बरसाता है
कुछ दी हुई उपेक्षित श्वासों में
बस उसकी उमर कट जाती है
सदियों को पलटकर देखो तो
हर सदी ने यही दोहराया है
नारी को जी भर लूटा है
नारी को खूब सताया है
इस विश्व में स्वयं को तुम
अगर मानव कहलवाना चाहते हो
नारी को पूजो , पूजो नारी को
जो फिर जीवन पाना चाहते हो।