न मैं कवि न शायर,गज़लगोन न मैं कोई गीतकार हूं ।
उठती है दिल में बात जो,मैं उसी का निबहगार हूं ।
उठती है दिल में बात जो,मैं उसी का निबहगार हूं ।
इस दिल में जब भी उठी सदा,
ये दिल कभी जो मचल गया ।
वो गुबार उनकी याद का ,
यूं ज़ुबां पै आके फ़िसल गया।
ये दिल कभी जो मचल गया ।
वो गुबार उनकी याद का ,
यूं ज़ुबां पै आके फ़िसल गया।
कोई देश पे कुर्बां हुआ,
कोई राष्ट्र हित कुछ कर गया।
कोई अपनी सारी ज़िन्दगी,
इन्सानियत पै लुटा गया ।
कोई राष्ट्र हित कुछ कर गया।
कोई अपनी सारी ज़िन्दगी,
इन्सानियत पै लुटा गया ।
जो कसीदे उन के लिख दिये,
जो ज़ुबां से गीत फ़िसल गया।
वही नग्मे सुर में गा दिये ,
मैं न कोई कलमकार हूं ।
जो ज़ुबां से गीत फ़िसल गया।
वही नग्मे सुर में गा दिये ,
मैं न कोई कलमकार हूं ।
न मेंकवि न.......................................................।।
कुछ लोग जो झुक कर बिछगये,
कुछ चंद सिक्कों पे बिकगये ।
कुछ अहं में ही अकडे रहे ,
कुछ बंधनों में जकड गये।
कुछ लोग जो झुक कर बिछगये,
कुछ चंद सिक्कों पे बिकगये ।
कुछ अहं में ही अकडे रहे ,
कुछ बंधनों में जकड गये।
साहित्य, कविता ओ छंद के,
ठेके सज़ायें, वे सब सुनें।
रट कर के चन्द विधाओं को,
खम ठोकते हैं वे सब सुनें।
ठेके सज़ायें, वे सब सुनें।
रट कर के चन्द विधाओं को,
खम ठोकते हैं वे सब सुनें।
हर बात,जिसमें समाज़ हित,
हर वाक्य जिसमें है जन-निहित।
हर विधा संस्क्रित-देश हित,
उसी कविता,कवि का प्यार हूं।
न मैं कवि न.......................................................॥
मेंने बिगुल फ़ूंका काव्य का,
साहित्य की रची रागिनी ।
इतिहास ओ वीरों के स्वर,
रची धर्म की मंदाकिनी ।
हर वाक्य जिसमें है जन-निहित।
हर विधा संस्क्रित-देश हित,
उसी कविता,कवि का प्यार हूं।
न मैं कवि न.............................
मेंने बिगुल फ़ूंका काव्य का,
साहित्य की रची रागिनी ।
इतिहास ओ वीरों के स्वर,
रची धर्म की मंदाकिनी ।
मेंने दीं दिशायें समाज़ को,
इतना तो गुनहगार हूं ।
लिखदूं ,कहूं, गाता रहूं ,
इन्सान सदा बहार हूं ।
इतना तो गुनहगार हूं ।
लिखदूं ,कहूं, गाता रहूं ,
इन्सान सदा बहार हूं ।
न मैं कवि न शायर गज़लगो,न मैं कोई गीतकार हूं ।
उठती है दिल में बात जो,मैं उसी का निबहगार हूं ॥
उठती है दिल में बात जो,मैं उसी का निबहगार हूं ॥