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मंगलवार, 25 मई 2010

बच्चों की प्रतिभा दिखाने का सबसे अच्छा माध्यम है इटंर नेट.........(बाल साहित्य).....मोनिका गुप्ता

जी हाँ, आजकल नेट का क्रेज लोगो मे बहुत ज्यादा हो रहा है खासकर बच्चे तो इसे बहुत पसंद करने लगे है क्या कुछ नही है इस पिटारे मे. चंद सैकिंडो मे दुनिया सामने होती है. 

अब अगर आप यह सोचने लगे कि इसमे अच्छाईयाँ कम और बुराईया ज्यादा है क्योकि इसके आने के बाद से बच्चे बिगडने लगे हैं. गलत गलत साईट देखते हैं तो मै यह जानना चाहती हूँ कि इसका मतलब तो यह हुआ कि इंटर नेट के आने से पहले बच्चे बिगडते ही नही थे. गाय बने चुपचाप बैठे रहते थे. तब भी आपका जवाब ना मे ही होगा.तो आखिर आप चाहते क्या है ...... अगर हर बात मे नकारात्मक सोच रखेगे तो नतीजे भी वैसे ही आएगे. इंटर नेट का क्षेत्र बहुत विशाल है इसलिए मै ज्यादा बात ना करते हुए अपनी एक ही बात पर आती हूँ वो है बच्चो मे छिपी हुई प्रतिभा निखारने और उसे मंच देने का इससे अच्छा साधन हो ही नही सकता. आप सोच रहे होगे कि कैसे ... तो वो ऐसे कि हर बच्चे मे कोई ना कोई हुनर होता है पर कई बार या किसी भी वजह से वो सामने नही आ पाता. इसमे कोई शक नही कि टी.वी. भी इसका सबसे अच्छा साधन है पर आप तो जानते ही है कि मौका मिलता कितने बच्चो को है. इसमे हजारो लाखो बच्चे संगीत व अन्य कला मे ओडिशन देते है पर मुश्किल से 10 या 20 ही चुने जाते है तो क्या और बच्चे प्रतिभावान ही नही है. क्या उन्हे मायूस होकर चुप चाप बैठ जाना चाहिए अपनी किस्मत पर रोना चाहिए तो मेरा जवाब है नही .... जब हुनर है तो क्यो ना दुनिया को दिखा दे. यू ट्यूब पर उसकी विडियो बना कर ना सिर्फ डाली जा सकती है बलिक उसका लिंक भेज कर अपने देश के या विदेशी दोस्तो को भी दिखाई जा सकती है और बहुत लोग इसे कर भी रहे है. जिसमे हर प्रतिभावान बच्चे को मौका दिया जाता है इनकी कला को देख कर उसे यू ट्यूब पर अप लोड किया जाता है. हर तरह की प्रतिभा विडियो के माध्यम से देखी जा सकती है. इस से ना बच्चो का मनोबल बढता है बलिक वो और कुछ अच्छा करने की कोशिश मे जुट जाते हैं. अब अगर आपके मन मे यह आ रहा हो कि इन विडियो का कोई गलत इस्तेमाल भी कर सकता है तो फिर मैं कुछ कहना ही नही चाहती ना ही आपको इस दिशा मे प्रयास करने चाहिए. बस मै यही कहना चाहती हूँ कि समय बहुत तेजी से आगे निकल रहा है इसके साथ नही चलेगे तो बहुत पीछे रह जाएगें. 

पूरी दुनिया जानने के लिए इटंर नेट् नेट से अच्छा साधन हो ही नही सकता और अगर इसी मे आपकी अपनी पहचान भी बन जाए तो क्या कहना.अब तो बस आप स्कूली छुट्टियो का फायदा उथाते हुए अपने और अपने बच्चो मे छिपे हुनर को जानने मे जुट जाए.  

बचपन ************* {कविता} ********* सन्तोष कुमार "प्यासा"

आनंद की लहरों में हिलोरें खाने वाला जीवन


मानव का प्राकृतिक से होता है पहला मिलन

ना गृहस्थी का भार ना जमाने का फिक्र ,

ना खाने कमाने का फिक्र

निश्चिन्तता के आँगन में विचरता है बचपन

प्राकृतिक की गोद में बैठता जब वह  सुकुमार 

पड़ी रहती कदमों में उसके  खुशियाँ अपार

होता है वह अपने बचपन का विक्रम

दूर रहतें है उससे ज़माने के सारे भ्रम

न देता वह ख़ुद को कभी झूठी दिलाशा

ना रहता कभी वह किसी चाहत और खुशी का "प्यासा"
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