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बुधवार, 25 नवंबर 2009

इंण्डिया कहकर गर्व का अनुभव करते हैं -------(मिथिलेश दुबे)

सन् १९४७ में भारत और भारतवासी विदेश दासता से मुक्त हो गये। भारत के संविधान के अनुसार हम भारतवासी 'प्रभुता सम्पन्न गणराज्य' के स्वतन्त्र नागरिक है। परन्तु विचारणीय यह है कि जिन कारणो ने हमें लगभग १ हजार वर्षो तक गुलाम बनाये रखा था , क्या वे कारण निशेःष हो गये है? जिन संकल्पो को लेकर हमने ९० बर्षो तक अनवरत् संघर्ष किया था क्या उन संकल्पो को हमने पूरा किया है? हमारे अन्दर देश शक्ति का अभाव है। देश की जमीन और मिट्टी से प्रेम होना देशभक्ति का प्रथम लक्षण माना गया है। भारत हमारी माता है उसका अंग- प्रत्यंग पर्वतो, वनो नदियो आदि द्वारा सुसज्जित है उसकी मिट्टी के नाम पर हमें प्रत्येक बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। राणा प्रताप सिंह शिवाजी से लेकर अशफाक उल्लाह महात्मा गांधी आदि तक वीर बलिदानियो तक परम्परा रही , परन्तु अब यह परम्परा हमें प्रेरणा प्रदान नहीं करती। आज हम अपने संविधान मे भारत को इंण्डिया कहकर गर्व का अनुभव करते हैं, और विदेशियों से प्रमाण पत्र लेकर गौरवान्वित होने का दम्य भरते है। हमारे स्वतन्त्रता आन्दोलन की जिस भाषा द्वारा देश मुक्त किया गया, उस भाषा हिन्दी को प्रयोग में लाते हुए लज्जा का अनुभव होता है।


अंग्रजी भक्त भारतीयों की दासता को देखकर सारी दुनिया हमपर हँसती है। वह सोचती है कि देश गूँगा है जिसकी कोई अपनी भाषा नहीं है उसको तो परतन्त्र ही बना ही रहना चाहिए बात ठीक है विश्व में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ के राजकाज में तथा तथाकथित कुलीन वर्ग में एक विदेशी भाषा का प्रयोग किया जाता है। आप विचार करें कि वाणी के क्षेत्र में आत्महत्या करने के उपरान्त हमारी अस्मिता कितने समय तक सुरक्षित रह सकेंगी। राजनीति के नाम पर नित्य नए विभाजनो की माँग करते रहते है। कभी हंमे धर्म के नाम पर सुरक्षित स्थान चाहिए तो कभी अल्पसंख्यको के वोट लेने के लिए संविधान में विशेष प्रावाधान की माँग करते हैं। एक वह युग था जब सन् १९०५ में बंगाल विभाजन होने पर पूरा देश उसके विरोध में उठ खड़ा हुआ था। परन्तु आज इस प्रकार की दुर्घटनाएं हमारे मर्म का स्पर्श नहीं करती हैं। सन् १९४७ में देश के विभाजन से सम्भवतः विभाजन-प्रक्रिया द्वारा हम राजनीतिक सौदेबाजी करान सीख गए हैं। हमारे कर्णधारों की दशा यह है कि वे किसी भी महापुरुष के नाम पर संघटित हो जाते है तथा उसके प्रतिमा स्थापन की विशेष अधिकारो की माँग करने लग जाते है। यहाँ तक कि राजघाट में राष्ट्रपिता की समाधि के बराबर में समाधि-स्थल की माँग करते हैं। हमारे युवा वर्ग को विरासत में जो भारत मिलने वाला है उसकी छवि उत्साह वर्धक नहीं है। भारत में व्याप्त स्वार्थपरता तथा संकुचित मानसिकता को लक्ष्य करके एक विदेशी पत्रकार ने एक लिख दिया था कि भारत के बारे में लिखना अपराधियों के बारे में लिखना है। आपातकाल के उपरान्त एक विदेशी राजनयिक ने कहा था कि भारत को गुलाम बनाना बहुत आसान है, क्योंकी यहाँ देशभक्तो की प्रतिशत संख्या बहुत कम है। हमारे युवा वर्ग को चाहिए कि वे संघठित होकर देश-निर्माण एंव भारतीय समाज के विकास की योजनाओं पर गम्भीरतापुर्वक चिन्तन करें उन्हे संमझ लेना चाहिए कि हड़तालो और छुट्टियाँ मनाने से न उत्पादन बढता है और न विदेशी कर्ज कम होगा। नारेबाजी और भाषणबाजी द्वारा न चरित्र निर्माण होता है और न राष्ट्रियता की रक्षा होती है। नित्य नई माँगो के लिए किये जाने वाले आन्दोलन न तो महापुरुषो का निर्माण करते है और न स्वाभिमान को बद्धमूल करते हैं ।

आँखे खोलकर अपने देश की स्थिति परिस्थिति का अध्ययन करें और दिमाग खोलकर भविष्य-निर्माण पर विचार करें। पूर्व पुरुषो को प्रेरणा -स्त्रोत बनाना सर्वथा आवश्यक है। परन्तु उनके नाम की हुण्डी भुनाना सर्वथा अनुचित होने के साथ अपनी अस्मिता के साथ खिलवाडठ करना है। देश की अखण्डता की रक्षा करने में समर्थ होने के लिए हमें स्वार्थ और एकीकरण करके अपने व्यक्तित्व को अखण्ड बनाना होगा। देश की स्वतंत्रता के नाम पर मिटने वाले भारतविरों नें देशभक्ति को व्यवसाय कभी नहीं बनया। हमें उनके चरित्र व आचरण की श्रेष्ठता को जीवन में अपनाना होगा , आज देश की प्रथम आवश्यकता है कि हम कठोर परिश्रम के द्वारा देश के निर्माण मे सहभागी बनें।