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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

रामावतार.............(सत्यम शिवम)

ये है मेरी पहली कविता जो मैने पाँचवी क्लास में लिखा था....सोचा आज आपलोगों के समक्ष रखूँ........



जब राम ने सृष्टि पर जन्म लिया,
अयोध्या नगरी में फूल खिला।
चारों ओर खुशी के डंके बजे,
मयूर मस्त हो नाच उठे।

त्रिदेव दर्शनार्थ लालायित हुएँ,
मोहक छवि की दर्शन के लिएँ।

ज्यों ज्यों कमल का फूल खिला,
त्यों त्यों राम भी खिलने लगे।

कौशल्या थी सच की पुजारी,
भगवान हुए तब धनुर्धारी।

बनवास ही उनका भावी था,
रावण को मारना न्याय ही था।

रावण तो गया स्वर्ग सिधार युद्ध में,
भगवान हुए तब दुख के आधार।

चला गया विद्वान सृष्टि से,
सृष्टि लगता है मुझको खाली,
भगवन के इस वचन को सुन,
सीता हुई आश्चर्य चकित नारी।

रावण तो था दुष्ट अत्याचारी,
कहाँ लगता मुझे सृष्टि खाली।

भगवन धिमी हँसी बिखेरते बोले,
फिर भी लगता सृष्टि खाली।


जीवन राग ----------[सुमन ‘मीत’ ]

जीवन राग की तान मस्तानी


समझे न ये मन अभिमानी



बंधता नित नव बन्धन में


करता क्रंदन फिर मन ही मन में



गिरता संभलता चोट खाता


बावरा मन चलता ही जाता



जिस्म से ये रूह के तार


कर देते जब मन को लाचार



होता तब इच्छाओं का अर्पण


मन पर ज्यूँ यथार्थ का पदार्पण



छंट जाता स्वप्निल कोहरा


दिखता जीवन का स्वरूप दोहरा



स्मरण है आती वो तान मस्तानी


न समझा था जिसे ये मन अभिमानी !!