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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

मन संगीत

सुर,लय, ताल,छंदमय है मन संगीत



बहते रहते हर पल, प्रेम विरह के गीत


जैसे चाँद चकोर की प्रेम कहानी


वैसे ही है मन-विचार मन मीत



आशा निराशा के सुरों से पुलकित होता ह्रदय



मिलन-विरह की निरंतर चलती रहती रीत



सुख दुःख तो है मन संगीत के उतार चढाव



सौहार्द के पुष्प खिल जाए, जब हो मन से मन को प्रीत




सुखद,दुखद, सहज, कठिन मन संगीत



उम्मीदों अरमानो की धुन में, जाए जीवन बीत


मन से मन संगीत के मर्म को समझों


मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

प्रगति या पतन ???

मानते हैं हर राह में तुमने सफलता पाई


आसानी से निपटलिया प्रगति पथ पर जो भी मुश्किल आई

नित नव विषय पर तुमने आविष्कार किया

जड़ ज्ञान का तुमने खूब प्रचार किया

मानते है चद्रमा पर भी तुम विजय पताका फहरा आए

मृत्युके मुख से भी जीवन को छीन लाए

निज विवेक से आकाश में भी गमन किया

मानते हैं तीनो लोक का तुमने भ्रमण किया

मानते है तुमने कई मुश्किलों को आसान बनाया है

स्रष्टिके कई रहस्यों से तुमने परदा उठाया है

पर शायद भूल गए विज्ञानं कितना व्याल है

इसका वास्तविक रूप कितना विकराल है

क्या इतना करके भी तुम्हे मिली है शान्ति

सच बताओ क्या तुमने पाई है विश्रांति

भूल रहे हो ख़ुद को होकर विज्ञानं में अविरल अलमस्त

स्वयं को भी समय नही दे पा रहे हो हो गए हो इतना व्यस्त

जरा सोंचो और बताओ की यह प्रगति है या पतन ?

क्या सिर्फ़ इसी लिए है यह जीवन ?

भूल गए हो ऋषि मुनियों के पवित्र वचन

क्या करते हो कभी यम् नियम आशन और ब्रह्मचर्य का पालन ?

क्या इतना कर के भी मिति है तुम्हारी आरजू क्या बुझी है तुम्हारी "प्यास" ?

सभ्यता संस्कृति साहित्य आराधना भी है कुछ

क्या तुम्हे इस बात का है अहसास ????

जरा सोंचो और बताओ की यह प्रगति है या पतन