हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

नया जीवन


टकटकी बाँधकर देखती है

जैसे कुछ कहना हो

और फुर्र हो जाती है तुरन्त

फिर लौटती है

चोंच में तिनके लिए

अब तो कदमों के पास

आकर बैठने लगी है

आज उसके घोंसले में दिखे

दो छोटे-छोटे अंडे

कुर्सी पर बैठा रहता हूँ

पता नहीं कहाँ से आकर

कुर्सी के हत्थे पर बैठ जाती है

शायद कुछ कहना चाहती है

फिर फुर्र से उड़कर

घोंसले में चली जाती है
सुबह नींद खुलती है

चूँ...चूँ ...चूँ..... की आवाज

यानी दो नये जीवनों का आरंभ

खिड़कियाँ खोलता हूँ

उसकी चमक भरी आँखों से

आँखें टकराती हैं

फिर चूँ....चूँ....चूँ...!!!
कृष्ण कुमार यादव