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रविवार, 9 जनवरी 2011

साक्षात्कार---------उभरते कवि अंकित जैन से

मीत, क्यो गाता कल का गीत
बना तू कोई अपनी रीत ...
..

ये पक्तियाँ हम नही बल्कि अंकित जैन जो कि एनआईटी, कुरुक्षेत्र मे बी टेक
के छात्र हैं. उन्होने खुद लिखी हैं और ना जाने ऐसी कितनी ढेरो कविताए
लिखी है.उनसे बात करने के बाद और उनकी कविताए सुनने के बाद हमे महसूस हुआ
कि नौजवान बच्चो के लिए अंकित बहुत अच्छा उदाहरण बन सकते हैं क्योकि आज
के समय मे, इन बच्चो खास तौर पर इंजिनियरिंग या दूसरे क्षेत्रो मे पढाई
का इतना प्रेशर है कि वो सिर्फ पढाई के इलावा कुछ और करने का सोच ही नही
सकते जबकि पढाई के साथ साथ दूसरे क्षेत्रो की कलाओ मे भी हिस्सा लेना
उतना ही जरुरी होता है. 18 सितम्बर 1991 को सूरत गढ (राजस्थान) मे जन्मे
अंकित के एक ही बडे भाई दीपक हैं.पापा सरकारी नौकरी मे हैं और मम्मी
चंदा गृहणी हैं. जब अंकित नौवी क्लास मे थें तब पहली बार इन्होने कविता
लिखी.घर पर मम्मी पापा से और दोस्तो से जब प्रोत्साहन मिला तो अंकित ने
यह महसूस किया कि अपनी भावनाए व्यक्त करने का कविता से अच्छा माध्यम कोई
हो ही नही सकता बस उस दिन से जब भी मन मे कोई भाव पैदा हुए इन्होने उसे
कविता मे पिरो दिया.
“दोस्त” को अंकित की सबसे अच्छी बात यह लगी कि जब वो कविता सुनाते हैं
तो सुनाते समय ऐसे भाव झलकते हैं जोकि किसी को भी अपनी और खींच लेते हैं
और शायद यही उनके लेखन की सबसे बडी खासयित भी है.अलग अलग विषयो पर अंकित
ने कविताए लिखी हैं
“नन्ही भिखारिन”,”हम राही”,”मेरा बचपन”,”दो पत्थर”,”तब सोया, अब जागा”
आदि इनकी कुछ खास कविताएं हैं जोकि सुनने वाले को इतना प्रभावित कर देती
हैं कि वो कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर हो जाते हैं. बातो बातो मे उन्होने
बताया कि वो “माँ” पर कभी लिख नही पाएगे क्योकि उनके बारे मे इतना कुछ है
कहने को. वो शब्दो मे उन्हे कभी भी बाँध ही नही पाएगे.

अंकित ने “दोस्त” से बातचीत मे बताया कि जब भी उनके मन मे कोई विचार आता
है तो वो बस लिखने बैठ जाते हैं और जितनी भी अभी तक कविताए लिखी है यह
सभी कविताए एक ही बार मे लिखी गई हैं.बात करते करते अचानक वो मंद मंद
मुस्कुराने लगे जब उनसे वजह पूछी तो उन्होने बताया कि एक बार परीक्षा
शुरु होने से पहले एक विचार मन मे बार बार आ रहा था. पेपर शुरु होने मे
बस आधे घंटा ही बचा था पर उन्होने उस विचार को शब्दों का रुप देने मे समय
नही लगाया. उस पर कविता लिखी और फिर परीक्षा भवन भागे.
हैरानी की बात है कि अंकित टीवी नही देखते. हाँ, कभी मौका मिले तो
क्रिकेट मैच देख लेते हैं पर सीरीयल इत्यादि तो बिल्कुल नही पसंद करते.
.खाने मे दाल, बाटी, चूरमा बहुत पसंद है.फेस बुक से अंकित बहुत प्रभावित
है.वो कहते हैं कि एक दूसरे को जानने का पहचानने का बहुत अच्छा मंच है.
अपने प्ररेणा स्रोत्र के बारे पूछने पर उन्होने बताया कि “आचार्य श्री
महाप्रज्ञ” जोकि तेरापंथी जैन आचार्य हैं उनसे बहुत कुछ सीखा है और
उन्होने ही राह दिखाई है.वो उन्ही से ही प्रेरित हैं.
अंकित का मानना है कि कभी भी रुकना नही चाहिए. बस आगे बढते जाना
चाहिए.कोई राह नही मिले तो अपनी राह खुद बनानी चाहिए. अंकित को “दोस्त”
भी बहुत पसंद आया.उन्होने बताया कि आजकल हम एक दूसरे को कभी उत्साहित
नही करते.जिस वजह से जो कुछ करना भी चाहता है उसका हौंसला खत्म हो जाता
है पर दोस्त का ये प्रयास काबिले तारीफ है. आगे बढने के लिए उत्साहित
करने से निसंदेह आत्मबल बहुत ज्यादा बढता है. अब वो आगे भी नया और
अच्छा लिख कर ना सिर्फ “दोस्त” के सम्पर्क मे रहेगें बल्कि और
प्रतिभावान बच्चो को भी यह मंच दिलवाने का प्रयास करेगें.
“दोस्त” के कहने पर जाते जाते अंकित ने अपनी कविता की चंद पंक्तियाँ
सुनाई. निकल जाना चाहिए,लक्ष्य की छानबीन करने मैं भी निकला था यही सोच
कर मन मे लक्ष्य की गाठँ बाँध कर
सबसे लडता- झगडता राही निकल गया अपनी राह पर ,मझधार तक खाई इतनी ठोकर पर
पीछे नही मुडे, आगे बढे क्योकि सूनसान राहे अपनी सी लगे ...
“दोस्त” ने अपनी शुभकामनाएं अंकित को दी और तलाश मे चल दिया किसी और छिपी
प्रतिभा को खोजने. पर जाते जाते अंकित के बारे मे यही विचार आ रहे थे कि
...
परिंदो को मिलेगी मंजिल एक दिन ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं वही लोग
रहते हैं खामोश अकसर जमाने मे जिनके हुनर बोलते हैं ....



प्रस्तुति--
मोनिका गुप्ता
सिरसा
हरियाणा